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‘लाश’ का इलाज

Mithilesh's Pen
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बबलू… बबलू… अरे तोहार बाऊजी…

खेत में काम कर रहा बबलू अपनी माँ को फफकते देखा तो फावड़ा वहीं छोड़कर भागा.

उसके बाप जैसे-तैसे पैसे जोड़ कर, कुछ उधार लेकर बनाई एक तले की छत से गिर कर बेहोश हो गए थे.

पड़ोस के सरपंच की बोलेरो में भरके सब जिला मुख्यालय की ओर भागे तो वहां के डॉक्टर ने देखते ही ‘केस’ बनारस रेफर कर दिया!

यूपी के पूर्वांचल में किसी जिले में ‘मेडिकल केस’ बिगड़े, लोगबाग बनारस ही भागते हैं.

इस बीच बबलू के बाऊजी की हालत बिगड़ती जा रही थी…

और वही हुआ, जिसका डर था

बनारस से 25 – 30 किलोमीटर पहले ही उनकी नब्ज़ बन्द हो गयी.

गाड़ी रोककर रोना पीटना शुरू हो गया, तो गाँव के लोगों ने बबलू को वापस लौटने की सलाह दी.

पर उसकी माँ रिरियाने लगी कि अब थोड़ी दूर ही तो है, हॉस्पिटल ले चलो न बबलू…

थोड़ा बहुत, कहीं तोहार बाऊजी के प्राण अंटका होगा..

सब जान चुके थे, किन्तु वो बुढ़िया की ज़िद्द पर बनारस जाना ही पड़ा.

पहले तो उस मशहूर हॉस्पिटल में डॉक्टर भर्ती ही नहीं कर रहे थे, पर सरपंच ने इधर-उधर किसी नेता को फोन लगाया तो बबलू के बाऊजी को आईसीयू में घुसा दिए.

वह इलाज तो क्या करते, एक घंटे बाद उन्होंने ‘डेड’ डिक्लेयर कर दिया उस ‘डेड बॉडी’ को! सब जानते ही थे, पर यह क्या…

48 हजार का बिल !!!

किस बात के ??

वैसे भी पैसे तो थे ही नहीं उनके पास, और गिड़गिड़ाने के असर से मुंशी प्रेमचंद के ज़माने से ही डॉक्टर्स मुक्त रहे हैं.

बबलू तो लाश छोड़कर जाने को तैयार हो गया, पर…

माँ… वह बेहोश होने लगी..

पानी के छींटे के बाद होश में आयी तो, गला फाड़-फाड़कर रोने लगी.

गाँव से साथ गए सभी लोगों की आँखें भर आईं..

सरपंच ने जेब टटोला तो कुल चार हजार तीन सौ रूपये थे, और भी लोगों ने जेब टटोलीं, मगर अड़तालीस हजार…

अपनी माँ और गाँव के एक व्यक्ति को वहीं छोड़कर बोलेरो वापस लौट चली गाँव की ओर!

बबलू सबके घर जा-जाकर चंदा इकठ्ठा करने लगा, ताकि…

‘लाश’ के इलाज की फीस भर सके!

– मिथिलेश ‘अनभिज्ञ’


‘लाश’ का इलाज – Short story, Treatment of Dead body, Hindi Kahani

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