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रक्षा खरीद मामलों में सवाल-जवाब से आगे बढ़े संसद!

Mithilesh's Pen
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राज्यसभा में अगस्टा वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर डील पर खूब गरमागरम बहस हो रही है तो शेरो शायरी के माध्यम से एक-दुसरे पर आरोप-प्रत्यारोप भी खूब लगाए जा रहे हैं. इस चर्चा की शुरुआत में ही समाजवादी पार्टी सांसद रामगोपाल यादव ने बोलना शुरू किया और कहा कि ‘हमने बोफोर्स से भी कुछ नहीं सीखा.’ जाहिर है, सवाल-जवाब खूब होंगे, बातें भी खूब कही जाएँगी किन्तु बात वहीं आकर टिक जाएगी कि इन समस्त कवायदों से हमने क्या सीखा? सेना जैसे अहम संस्थान और रक्षा खरीद जैसे महत्वपूर्ण मसलों पर आखिर हम किस प्रक्रिया का पालन कर रहे हैं कि बात आकर ‘बिचौलियों’ पर रूक जा रही है! क्या हम दिल्ली के किसी अनधिकृत कॉलोनी में प्रॉपर्टी डीलरों के माध्यम से कोई फ्लैट या ज़मीन का टुकड़ा खरीद रहे हैं, जहाँ 1% और 2% पर बात बन बिगड़ जा रही है? विश्व की बड़ी और प्रोफेशनल सेनाओं में गिनी जाने वाली भारतीय सेनाओं के बारे में संसद में यही चर्चा करने को रह गया है कि किस रक्षा खरीद में, किसने कितनी दलाली खाई? क्या वाकई एक राष्ट्र के रूप में हम अपनी सजगता से मुंह मोड़े बैठे हैं? जहाँ तक कांग्रेस पार्टी की बात रही है तो विवादों और कांग्रेस का तो जैसे चोली-दामन का साथ रहा है. गांधी परिवार भी तमाम घोटालों की आंच से खुद को बचा नहीं पाया है, हालाँकि कांग्रेसीजन अपनी जान लगा देते हैं कि ‘राज परिवार’ के ऊपर किसी प्रकार की आंच न आने पाये, लेकिन बावजूद इसके ‘गांधी परिवार के सदस्यों’ के नाम सामने आये हैं और खुलकर सामने आये हैं.

आजाद भारत में जो गांधी परिवार के ऊपर घोटालों के आरोप लगे हैं, उनका सिलसिला 60 के दशक से ही शुरू है. 1951 में हुए मूंदड़ा स्कैंडल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भी लपेटे में ले लिया था तो 1971 में नागरवाला स्कैंडल में इंदिरा गांधी का नाम बखूबी उछला था. इसी समय के आसपास 1973 का मारुती घोटाला जिसमें संजय गांधी फंसे थे तो 1990 से लेकर 2014 तक चले बोफोर्स घोटाला और उसकी जांच में राजीव गांधी का नाम बदनामी के रूप में सामने आया. इसी तरह, 2011  में सोनिया और राहुल के नाम के साथ जुड़ा नेशनल हेराल्ड स्कैम! 2012 में वाड्रा-डीएलएफ़ घोटाला सोनिया के दामाद रोबर्ट वाड्रा के नाम रहा तो वहीं 2013 के अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में एक बार फिर सोनिया गांधी और उनके सहयोगियों का सीधा नाम लिया जा रहा है. बताते चलें कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर आरोप है कि हेलीकॉप्टर की खरीद में 3 करोड़ यूरो की घूस दी गई है, और इस मामले से उनका सीधा सम्बन्ध रहा है. जाहिर है यह एक बड़ा आरोप है और चूंकि इस मामले में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही खुलकर खेल रहे हैं, इसलिए मामला और गम्भीर होता जा रहा है. राज्यसभा में अब तक आक्रामक रहने वाली कांग्रेस थोड़ी बैकफुट पर इसलिए भी नज़र आ रही है, क्योंकि अपनी ज़िन्दगी का एक लम्बा हिस्सा ‘गांधी परिवार’ के विरोध में लगा देने वाले सुब्रमण्यम स्वामी को भाजपा ने राज्यसभा सदस्य बनाकर सदन पहुंचा दिया है और वह पहले दिन से ही ‘कांग्रेस की नाक में दम’ किये हुए हैं.

स्वामी को लेकर कांग्रेसी बौखलाहट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस के आनंद शर्मा स्वामी को लेकर बीजेपी पर हमला बोलने से नहीं चूक रहे हैं कि ‘यह जो तोहफा(स्वामी को) आपने पेश किया है(राज्यसभा में), यह आपको भी नुकसान पहुंचाएगा, इंतजार कीजिए.’ हालाँकि राज्यसभा में सुब्रमण्यम स्वामी ने एक-एक तथ्य सामने रखे, जिनसे तत्कालीन कांग्रेसी सरकार की मंशा पर सवाल तो उठते ही हैं. प्रश्न इस बात पर भी उठता है कि ‘बोफोर्स घोटाले में अपनी बहुमत की सरकार गँवा चुकी कांग्रेस ने इस मामले में हीलाहवाली की हिम्मत किस प्रकार जुटा ली’? गौरतलब है कि रक्षा उत्पाद बनाने वाली अगस्ता वेस्टलैंड की मातृ कंपनी- फिनमेकैनिका के अधिकारियों द्वारा भारत में नेताओं और अधिकारियों को घूस देने के आरोपों की जांच कर रही इतालवी कोर्ट में ऐसे दस्तावेज सामने आए हैं, जिसमें ‘सेन्योरा गांधी’ के नाम का जिक्र है. हाल ही में इटली के हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया और उस फैसले में कोर्ट ने तत्कालीन भारतीय सरकार के अलावा कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का नाम भी लिया है. जाहिर है कोर्ट ने इस मामले में सेन्योरा (श्रीमती) गांधी को मुख्य आरोपी बताया है और मामला यहीं से कांग्रेस के लिए कठिन से कठिनतम होता जा रहा है. बताते चलें कि अगस्टा हेलिकाॅप्टर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति एवं अन्य वीवीआइपी के लिए उपयोग में लाये जाने थे. यूपीए शासन में हुए ये ‘सौदे’ विवाद बढ़ने के बाद तीन हेलिकॉप्टर आने के साथ ही रद्द कर दी गयी थी.

सबसे दुखद तो यह है कि इस मामले में तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी सहित तीन और पर टेंडर की शर्तों में बदलाव के आरोप लगे थे और अब जांच एजेंसियां इन लोगों से बखूबी जानकारियां निकाल रही हैं. इस सौदे में इटली की अदालत ने बिचौलियों के पास जब्त हस्तलिखित दस्तावेज के आधार पर माना है कि अगस्टा कंपनी ने अपने हेलिकॉप्टर बेचने के लिए भारत में करीब 125 करोड़ रुपये के घूस बांटे हैं. हालांकि कोर्ट के फैसले से यह स्पष्ट नहीं है कि घूस किसे दी गयी है, लेकिन  जज ने अपना फैसला सुनाते हुए ‘सेन्योरा गांधी’ का भी जिक्र किया, जिससे सरगर्मियां बढ़नी तय ही थीं. इस फैसले में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह व यूपीए के समय के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन का भी जिक्र किया गया है, जिससे कांग्रेस के लिए राह और भी मुश्किल होती जा रही है. हालाँकि सोनिया गांधी और उनकी टीम लगातार इस बात को नकार रही हैं, लेकिन फिर एक बार देश की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहा है कि कितना आसान है विदेशी कंपनियों द्वारा थोड़ा घुस देकर अपने सामान को भारत सरकार को बेचना और इसमें तो पूर्व रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी का नाम भी सामने आ रहा है, जिन्हें कथित तौर पर यूपीए में सबसे ईमानदार मंत्री कहा जाता था. कांग्रेस एक बात और बड़ी दृढ़ता से कह रही है कि यह सौदा उन्हीं की सरकार ने रद्द कर दिया था.

मामले को समझने पर स्पष्ट होता है कि पहले सौदा किया, फिर रद्द कर दिया लेकिन जो एक हजार करोड़ आगस्टा को दिया गया उसका क्या… वो पैसा  देश के आम आदमी की जेब से ही तो कटा था टैक्स के रूप में! और जो तीन बेकार हेलीकॉप्टर देश के गले मढ़ दिया गया, वो किसकी जवाबदेही है! हालाँकि मोदी सरकार पुरजोर कोशिश कर रही है इस मामले को उछालने की, लेकिन देखना होगा कि पूर्व में हुए घोटालों की गाज सिर्फ कुछ अफसरों पर गिर के रह गयी, कहीं वैसा ही असर इस बार भी न हो जाए! चूंकि मामला रक्षा खरीद से जुड़ा हुआ है, इसलिए यह बेहद आवश्यक है कि सेना से जुड़े मामलों में खरीद-फरोख्त की ऐसी प्रक्रिया विकसित की जाय, जिसमें विचौलियों का रोल ख़त्म हो सके. आखिर, एक सरकार सौदा कर रही है और इस सौदे में अगर कोई एक व्यक्ति अपनी मनमानी चला लेता है तो यह पूरे सिस्टम पर सवालिया निशान लगाता है. अगस्ता वेस्टलैंड मामले की जाँच तेजी से होनी चाहिए, जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो सके, लेकिन उससे भी बड़ी बात यह होनी चाहिए कि मामला केवल राजनीति तक ही सीमित न हो जाए, बल्कि इस मामले से सीख लेकर मोदी सरकार को बाहर से खरीद फरोख्त मामले में बेहद ट्रांसपेरेंट और सटीक तंत्र विकसित करना होगा, ताकि आगे ऐसे मामले संभव न किये जा सकें, विशेषकर सेना से जुड़े मामलों में! जनता की उम्मीद भी यही है कि मोदीजी आगे की राह सुगम बनाएंगे, क्योंकि कांग्रेस तो अपनी करनी का फल तो भुगत ही रही है, लेकिन देश ‘भ्रष्टाचार’ के ‘वायरस’ से कब मुक्त होगा, यह यक्ष प्रश्न है और इसका जवाब नरेंद्र मोदी की सरकार को ही देना होगा, किसी ‘सेन्योरा गांधी’ को नहीं!

– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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