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‘अखिलेश’ को जरूर मिले डेवलपमेंट की क्रेडिट!

Mithilesh's Pen
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यूं तो उत्तर प्रदेश को राजनीति का अखाड़ा इसलिए ही कहा जाता है, क्योंकि यहाँ इसके तमाम नए-पुराने दांव एक दुसरे पर आजमाए ही जाते रहते हैं. जो सत्ता में रहता है, अपना बचाव करता है तो विपक्षी उसके वादों एवं कार्यों को हवा में उड़ाने का दावा करते हैं. हालाँकि, कई बार आरोप-प्रत्यारोप हवा-हवाई ही होते हैं, जिनका खंडन करना सत्ता पक्ष आवश्यक नहीं समझता है और अगर बात कही जाय अखिलेश यादव की तो, वह तू-तू, मैं-मैं करते शायद ही कभी देखे गए हों. लेकिन, इस बार जब बसपा नेत्री मायावती ने मेट्रो-प्रोजेक्ट को लेकर अखिलेश से क्रेडिट छीनने की कोशिश की तब इस युवा नेता से रहा नहीं गया और उन्होंने इसका जवाब भी पुरजोर तरीके से दिया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पिछले दिनों लखनऊ यूनिवर्सिटी में आयोजित उत्तर प्रदेश बजट 2016-2017 पैनल परिचर्चा के उद्घाटन के दौरान मेट्रो और एक्सप्रेस-वे की बात करते हुए मायावती पर जमकर हमला बोला. मायावती की बात का सधे अंदाज में जवाब देते हुए, अखिलेश ने कहा कि अगर मेट्रो मायावती का प्रोजेक्ट था तो वो अपनी सरकार में मेट्रो क्यों नहीं चला पाईं? बताते चलें कि कुछ दिन पहले मायावती ने कहा था कि मेट्रो और एक्सप्रेस-वे बसपा सरकार की योजना है. जवाब देते हुए अखिलेश यहीं नहीं रुके, उन्होंने अपने हमले को और तीखा करते हुए स्पष्ट तौर पर कहा कि अगर 2008 में मेट्रो कागजों पर बनाई गई थी तो 2012 तक मायावती ने इसे जमीन पर क्यो नहीं उतारा?

भई, इस मृदुभाषी सीएम की बात का जवाब बसपा प्रमुख को अवश्य ही देना चाहिए कि अगर उनकी विकास योजनाओं में इतना ही दम और दूरदर्शिता थी तो फिर 2012 में प्रदेश की जनता ने सत्ता से उन्हें बाहर क्यों धकेल दिया था? खास तौर पर, मेट्रो प्रोजेक्ट की बात करें तो अखिलेश यादव को प्रदेश में इस सुविधा पर पर्याप्त ध्यान देने की क्रेडिट अवश्य ही मिलनी चाहिए. आखिर इसके लिए ही तो, लखनऊ मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन का हाल ही में संपन्न हुए 5वें वार्षिक मेट्रो रेल इंडिया समिट, 2016 में एक्सीलेंस इन इनोवेटिव डिजाइंस के लिए सर्वश्रेष्ठ मेट्रो परियोजना के रूप में आंकलन किया गया है. बताते चलें कि मार्च 2016 में आयोजित इस सम्मलेन में जयपुर मेट्रो, मुंबई मेट्रो, एल एंड टी मेट्रो रेल, लखनऊ मेट्रो के अतिरिक्त दूसरी कंपनियां एवं मेट्रो रेल परियोजनाओं के कंसल्टेंट्स और विनिर्माताओं ने भाग लिया था और इन सबमें लखनऊ मेट्रो ने बाजी मार ली. सिर्फ लखनऊ में ही क्यों बात करें, बल्कि अखिलेश यादव की दूरदृष्टि की सराहना इस बात के लिए भी करनी होगी कि लखनऊ के अतिरिक्त मेरठ, आगरा, कानपूर, इलाहाबाद एवं वाराणसी जैसे शहरों में भी मेट्रो प्रोजेक्ट्स चलाने की रूपरेखा इन्हीं के शासनकाल में तैयार की गयी है. इसमें कानपूर और वाराणसी मेट्रो की योजना तो काफी आगे बढ़ चुकी है, जबकि अन्य शहरों के लिए प्लानिंग अगले फेज में है. इस क्रम में, वाराणसी मेट्रो चलाने के लिए 15 हज़ार करोड़ रूपये की लागत से 29 किलोमीटर लम्बे रुट पर प्रस्ताव को सरकार ने अनुमोदित भी कर दिया है, जिसका डी.पी.आर. पहले ही स्वीकृत हो चुका है.

इन आंकड़ों के साथ-साथ मायावती जैसे विपक्षियों को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि 2013-14 के बजट में अखिलेश यादव ने ही लखनऊ मेट्रो का ज़िक्र किया था, जिसके बाद प्रदेश की राजधानी में वर्ल्ड-क्लास यातायात सुविधा करने की तैयारियां शुरू की गयीं और अभी तक के काम का आंकलन करने के बाद तमाम एजेंसियां एवं मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात का ज़िक्र है कि निश्चित समय, यानि 2017 में लखनऊ मेट्रो फर्स्ट फेज का कार्य पूरा हो जायेगा. जाहिर है, लखनऊ को न केवल मेट्रो मिली है, बल्कि यह नवाबों के इस शहर की गति को किस तेजी से और स्मूदनेस के साथ आगे बढ़ाएगा, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है. मेट्रो के रूप में शहरी जीवन को किस हद तक गति मिलती है, यह बात दिल्लीवासियों से बेहतर कौन समझ सकता है भला! आज दिल्ली यातायात व्यवस्था में रीढ़ की हड्डी बन चुकी दिल्ली मेट्रो की तर्ज पर अगर लखनऊ इस वैश्विक सुविधा से जुड़ सकेगा तो सूबे के मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत रुचि एवं उनकी दूरदर्शिता की सराहना खुले दिल से होनी चाहिए. ऐसा नहीं है कि अखिलेश यादव की विकास पुरुष की छवि केवल प्रदेश में मेट्रो-प्रोजेक्ट्स को लेकर ही है, बल्कि विकास एवं निवेश का माहौल बनाने के लिए भी इस युवा सीएम ने पूरे दिल से कार्य किया है. अभी हाल ही में, वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि उत्तर प्रदेश में सरकार की कोशिशों से उद्यम स्थापित करना या कारोबार करना पहले की तुलना में ज्यादा आसान हुआ है. अखिलेश सरकार के लिए यह आंकलन एक उपलब्धि की तरह ही है, क्योंकि यूपी इस मामले में हिंदुस्तान के 10 शीर्ष राज्यों में से एक और उत्तर-क्षेत्र का इकलौता राज्य बन गया है.

बताते चलें कि यह रिपोर्ट तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि व्यापार शुरू करना, उसके लिए ज़मीन अलॉटमेंट एवं कंस्ट्रक्शन की त्वरित इजाजत मिलना, पर्यावरण विभाग से तालमेल के बाद त्वरित अनुमति, मजदूरों की नियमावली का अनुपालन, टैक्स नियमों का अनुपालन एवं जांच प्रक्रिया इत्यादि में किस स्तर तक स्पष्टता एवं आसानी है. जाहिर है, अगर वैश्विक एजेंसियां इस बात की ओर इशारा कर रही हैं तो कहीं न कहीं अखिलेश यादव का ध्यान उत्तर प्रदेश की उस पुरानी बदनामी की ओर जरूर ही गया होगा, जो ‘इंस्पेक्टर राज’ के लिए बदनाम था, जिस पर अखिलेश यादव काफी हद तक लगाम लगाने में सफल सिद्ध हुए हैं. जाहिर है, अगर विकास के मोर्चे पर अखिलेश यादव की सराहना हो रही है तो फिर मुख्यमंत्री का उत्साह बढ़ना स्वाभाविक ही है. तभी तो, अखिलेश यादव ने हाल ही में यह दावा किया है कि उनकी पार्टी वर्ष 2017 में होने वाला विधानसभा चुनाव भी जीतेगी, क्योंकि उन्हें किए गए विकास कार्यों पर भरोसा है. यहीं नहीं, अखिलेश ने समाजवादी पार्टी द्वारा 265 से अधिक सीटें जीतने की भविष्यवाणी भी कर दी है. हालाँकि, चुनाव परिणाम आने के बाद ही असल सूरते-हाल समझ आएगी, किन्तु विकास के मोर्चे पर अखिलेश का उत्साह बढ़ा हुआ है, इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है. वह इस आत्मविश्वास का उपयोग जनता को रिझाने में किस हद तक कर पाते हैं, यह जरूर देखने वाली बात होगी.

इसी क्रम में, तमाम विकास परियोजनाओं को गिनाते हुए मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि बनारस दुनिया की सबसे पुरानी सांस्कृतिक नगरी है और इस शहर के पर्यटन विकास के लिए यूपी सरकार हर संभव कदम उठाएगी, जिसमें धन की कमी आड़े नहीं आने दी जाएगी. बताते चलें कि वाराणसी में पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिशों का एक हिस्सा वरुणा कॉरिडोर भी है तो, सारनाथ को बौद्ध पर्यटन का केंद्र बनाने के साथ ही 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराने का दावा प्रदेश सरकार पहले ही करती रही है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव प्रदेश के दुसरे क्षेत्रों में भी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सही दिशा में पहले ही प्रयत्न कर रहे हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव को लेकर सीएम अखिलेश का यह आत्मविश्वास अवश्य ही भाजपा और बसपा के खेमे में चिंता पैदा कर रहा होगा, क्योंकि सपा सरकार के कुछ अन्य लोग बेशक विवादित हुए हों, किन्तु अखिलेश की छवि जनता में मजबूत ही हुई है. इसके साथ -साथ अगर विकास के मोर्चे पर उन्हें विश्व भर से सराहना मिल रही है तो फिर यह ‘सोने पर सुहागा’ ही तो हुआ! हालाँकि, आने वाले समय में ऊंट किस करवट बैठता है, यह अवश्य ही देखने वाली बात होगी.

– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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