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बेटियों की सुरक्षा, संरक्षा और हमारा समाज

Mithilesh's Pen
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हमारे समाज में अगर बेटियों के प्रति मानसिकता में बदलाव आ जाए तो कई समस्याएं आप ही सुलझ सकती हैं. आज भी यह बेहद दुःख और पीड़ा की बात है कि अगर किसी घर में लड़की पैदा होती है तो उसके अभिभावकों के माथे पर ‘चिंता की लकीरें’ दौड़ने लगती हैं. यह हाल केवल गरीब तबके का ही नहीं है, बल्कि संपन्न तबके की भी हालत कमोबेश यही है. हाँ, चूँकि वह पढ़े-लिखे होते हैं, इसलिए हालत को प्रबंधन कर लेते हैं. हालाँकि, मूल मुद्दा सोच का ही है. इसी सोच को बदलने के लिए तमाम सरकारें विभिन्न समय पर अलग-अलग प्रयास भी करती रही हैं. भारत सरकार द्वारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ से लेकर उत्तर प्रदेश की सरकार का अभियान ‘पढ़े बेटियां, बढ़े बेटियां’ और देश के दुसरे अन्य भागों में भी बेटियों के भविष्य को लेकर खूब बातें होती हैं, किन्तु ज़मीन पर किस हद तक हालात बदले हैं, इस बात की शिनाख्त करने की ज़हमत कौन उठाएगा भला! देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूं तो कई तरह की योजनाएं बनाते हैं, उनको ज़ोर शोर से लांच करते हैं और फिर आगे बढ़ जाते हैं. उस योजना पर कितना कार्य हुआ, क्या उसके बारे में समस्याएं आईं, यह देखने का पैरामीटर विकसित करने में केंद्र सरकार को जरूरत महसूस क्यों नहीं होती, यह थोड़ी आश्चर्य की बात है! पिछले साल की शुरुआत में, बॉलीवुड की जानी मानी अभिनेत्री माधुरी दीक्षित के साथ हमारे प्रधानमंत्री ने हरियाणा में बड़े ज़ोर शोर से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत की थी. महिला एवं बाल विकास, मानव संसाधन मंत्रालय की साथ वाली इस योजना में मुख्य रूप से स्त्री-पुरुष लिंगानुपात घटाने पर ज़ोर देने की बात कही गयी थी, किन्तु सामाजिक स्तर पर इस योजना की लांचिंग के बाद लगाम ढीली छोड़ दी गयी लगती है.

हालाँकि, इसी क्रम में जब हम उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘बढ़े बेटियां, पढ़े बेटियां’ योजना की बात करते हैं तो तस्वीर थोड़ी आशाजनक नज़र आती है. अखिलेश यादव की इस योजना को भी देशव्यापी चर्चा मिली है, जोकि उनका बड़ा चुनावी वादा भी था! इस योजना की सफलता इस मामले में जरूर बयान की जानी चाहिए कि इससे गरीब लड़कियों को जुड़ने का सीधा अवसर मिला. अखिलेश सरकार द्वारा साल 2012 में गरीब तबके की बेटियों के लिए ‘पढ़े बेटियां, बढ़ें बेटियां’ नामक योजना की जोश-ओ-खरोश से शुरुआत की गयी. इस योजना में ज्यादा लाग-लपेट के बिना सूबे में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों की हाईस्कूल उत्तीर्ण छात्राओं को आगे की पढ़ाई के लिए 30,000 रुपये एकमुश्त दिये जाने की व्यवस्था की गई. इस बात में कोई संशय नहीं है कि इस योजना से लड़कियों और उनके परिवारों को काफी राहत मिली. नौकरशाही की लापरवाही के बावजूद, अखिलेश यादव ने इस योजना से हज़ारों लड़कियों को सीधा लाभ पहुंचाने में अवश्य ही सफलता अर्जित की है, इस बात में संशय नहीं! हालाँकि, सफलता का आंकड़ा और भी बढ़ाया जा सकता था, क्योंकि ज़मीनी हकीकत कहीं न कहीं यह कहानी बयां करती है कि इस योजना को लागू करते समय खुद उत्तर प्रदेश सरकार को जिस परिणाम की उम्मीद थी, उसे हासिल करने में कुछ दूरी बाकी रह गयी, हालाँकि प्रशासनिक आंकड़े इस लक्ष्य को पूरा मानते हैं. इस योजना के अंतर्गत प्रावधानित धनराशि के सापेक्ष 32334 छात्राओं को लाभान्वित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जिसमें कुल 31837 छात्राओं ने इस योजना का लाभ लिया. जब किसी सूबे का मुख़्यमंत्री पढ़ा लिखा होता है, तब शिक्षा को लेकर फर्क तो पड़ता ही है. यह तब और भी विशेष हो जाता है जब बात ‘लड़कियों की शिक्षा’ की हो रही हो.

यही नहीं, यूपी सरकार द्वारा इंटरमीडिएट उत्तीर्ण बालिकाओं को आगे की शिक्षा हासिल करने में आर्थिक मदद के लिए ‘कन्या विद्या धन’ योजना लागू की गयी, तो अल्पसंख्यक वर्ग की हाईस्कूल उत्तीर्ण लड़कियों को आगे की पढ़ाई हेतु प्रोत्साहित करने के लिए ‘हमारी बेटी, उसका कल’ योजना भी लागू हुई. इस बात में कोई संदेह नहीं कि अल्पसंख्यक समुदाय में शिक्षा के लिए विशेष प्रयास की आवश्यकता थी और उसे अखिलेश यादव ने समझने का प्रयत्न भी किया. देखा जाय तो अखिलेश सरकार ने बेटियों की शिक्षा के लिए एक समग्र प्रयास करने की शुरुआत की थी, हालाँकि यह प्रयास सिर्फ सरकार की इच्छा से सफल हो जायेगा, यह सोचना थोड़ा अव्यवहारिक ही होगा. इसके लिए तमाम समूहों और समाज के लोगों को आगे आना होगा, तो कानून-व्यवस्था की स्थिति और सुदृढ़ करने से स्थिति में कहीं ज्यादा बदलाव दिखेगा! कई लोग अपनी जवान बेटियों को सुरक्षा कारणों से पढाई के लिए बाहर भेजने से घबराते हैं और ऐसे में समस्या का निदान यही है कि उनको ‘सुरक्षा’ का अहसास दिलाया जाय. हालाँकि, महिलाओं से छेड़छाड़ की घटनाओं पर लगाम लगाने व उनको सुरक्षा प्रदान करने के लिए अखिलेश यादव द्वारा 1090 योजना शुरू की गई, और इससे छात्राओं व महिलाओं को सहायता भी मिली, लेकिन कई घटनाओं पर कार्रवाई होने में देरी को कम किया जा सकता था, जिससे महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर नियंत्रण बनाने में अवश्य ही मदद मिलती. देखा जाय तो लड़कियों की शिक्षा को जनांदोलन का रूप देने की कहीं ज्यादा आवश्यकता है और उसमें उत्तर प्रदेश सरकार की ‘पढ़े बेटियां, बढ़े बेटियां’ योजना सकारात्मक माहौल बनाने में काफी हद तक सफल भी रही. हालाँकि, भाजपा अखिलेश सरकार की आलोचना करते हुए कहती है कि सपा सरकार की ‘कथनी व करनी’ में जमीन आसमान का अन्तर है और प्रदेश की सपा सरकार का नारा “पढ़ें बेटियां बढ़ें बेटियां” बेसिक शिक्षा विभाग के फरमान की भेंट चढ़ गया है. इस सम्बन्ध में व्यवहारिक दृष्टि से यही कहा जा सकता है कि आलोचनाएं होती रही हैं और आगे भी होंगी, किन्तु यह बात किस प्रकार भूली जा सकती है कि ‘पढ़े बेटियां, बढ़े बेटियां’ योजना के तहत चयनित छात्राओं को राशि का भुगतान सीधे बैंक खाते में होने से कई गरीब छात्राओं को डायरेक्ट लाभ हुआ है. इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय योजना का प्रचार प्रसार भी प्रदेश में बड़े पैमाने पर करने की कोशिश भी दिखी है. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित किये जा रहे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के तहत 17 जिलों में चलाये जा रहे महिला सशक्तिकरण मिशन के तहत अनेक जिलों के विभिन्न स्थानों पर नुक्कड़ नाटक, गोष्ठी आयोजित किये गए हैं तो जागरूकता फैलाने के लिए पम्पलेट्स व पुस्तकों का वितरण भी किया गया है. अगर इस बात का विस्तृत व्यौरा निकाला जाय तो लड़कियों की शिक्षा में अवश्य ही सुधार नज़र आएगा, तो भ्रूण-हत्या जैसी प्रथा पर सख्ती के कारण लिंगानुपात में सुधार भी आने वाले समय में दृष्टिगत होगा.

हालाँकि, समाज के लोग जब तक सचेत नहीं होंगे तब तक भ्रष्ट डॉक्टर्स और नर्स इत्यादि गैर कानूनी कार्यों को करने का जोखिम चोरी-छिपे, लालचवश लेते रहेंगे. भ्रूण-हत्या पर केंद्र सरकार की एक मंत्री का ज़िक्र करना आवश्यक हो जाता है, जिन्होंने बेहद गैर-जिम्मेदाराना बयान दिया! भ्रूण-हत्या जैसे गम्भीर विषय पर मेनका गांधी के एक बयान ने काफी नकारात्मक चर्चा बटोरी थी, जिसमें गर्भावस्था में ‘लिंग-जांच’ को वैध बनाने की बात कही गयी थी. हालाँकि, उनको इस बयान के लिए कहीं से बड़ा सपोर्ट तो नहीं मिला, किन्तु उन पर कोई कार्रवाई भी नहीं हुई. जाहिर है, जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों के इस प्रकार के बयान ‘अनैतिक कार्यों’ को करने वाले की हौंसला आफजाई ही करेंगे. ऐसी ही हालत, प्रदेश की बहुजन समाज पार्टी का भी है, जिसने अपने एक सांसद की घर में उसकी बहु की आत्महत्या के बावजूद, उस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की! वह भी तब, जब मायावती के उस सांसद और उसके घरवालों पर ‘दहेज़ प्रताड़ना’ के गम्भीर आरोप लगे हैं. साफ़ है कि समाज के तमाम लोगों को एक सूर में ‘लड़कियों और महिलाओं’ के खिलाफ हो रहे अपराधों के विरोध में आवाज उठानी होगी, अन्यथा कोई भी सरकार अधिक से अधिक किसी अपराधी को सींखचों के पीछे डाल देगी, किन्तु उसकी सोच बदलने का कार्य तो सबको मिल कर ही करना होगा. उम्मीद की जानी चाहिए कि, समाज के लोग बेटियों के प्रति न केवल अपनी मानसिकता में बदलाव करने को तत्पर होंगे, बल्कि आने वाले समय में उनकी शिक्षा के लिए भी पुरजोर प्रयास करेंगे.

केंद्र सरकार की ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और उत्तर प्रदेश सरकार की ‘पढ़े बेटियां, बढ़े बेटियां’ जैसी योजनाओं का मूल यही है. उत्तर प्रदेश के मुख्य्मंत्री अखिलेश यादव ने कई कार्यक्रमों में बेटियों की शिक्षा के प्रति अपनी सजग सोच का स्पष्ट परिचय दिया है, जो उनकी योजनाओं में भी दृष्टिगत होता है. हालाँकि उत्तर प्रदेश और शेष भारत में लड़ाई कहीं ज्यादा लम्बी है, इस बात में दो राय नहीं!

– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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