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आतंकवाद एवं हथियार मार्किट के अन्तर्सम्बन्ध

Mithilesh's Pen
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यूरोप जहाँ सर्वाधिक विकसित और सम्पन्न होने का जश्न मनाता रहा है, वहीं अब तेज गति से आतंकवाद के जहर का सर्वाधिक शिकार भी होता जा रहा है. छिटपुट आतंकी हमलों को छोड़ भी दें तो 7 जनवरी, 2015 को पेरिस में मशहूर व्यंग्य पत्रिका चार्ली ऐब्दो के दफ्तर में हुए आतंकी हमले में 20 लोगों की जान गई थी, जिसने यूरोप समेत शेष विश्व को सकते में डाल दिया था. इस हमले से फ़्रांस उबरा भी नहीं था कि 13 नवम्बर 2015 को राजधानी पेरिस पर हुए एक बड़े आतंकी हमले में कम से कम 140 लोगों के मारे जाने और 55 लोगों के गंभीर रूप से घायल होने की खबर ने समूची मानवता को एक बार फिर दहला दिया. न केवल फ़्रांस बल्कि लन्दन समेत दुसरे यूरोपीय शहरों के लोग भी खौफ में रहे हैं कि न जाने किधर से और कब उनकी दुनिया में आतंक के धमाके सुनाई दे जाएँ. इसी कड़ी में, ब्रसेल्स में रोज की तरह सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक जैसे ही घड़ी में सुबह के 8 बजे, जैवनटेम हवाई अड्डा हिल उठा. इमारत की खिड़कियां चकनाचूर हो गईं और वहां मौजूद लोगों के शरीर के चीथड़े उड़ गए. जब तक किसी की समझ में कुछ आता, तब तक धुएं के गुबार से एयरपोर्ट ढक चुका था. इस हमले में 35 लोग मरे तो सैकड़ों घायल हो गए. मुश्किल यह है कि भारत में आतंकी हमलों पर पश्चिम के तमाम देश उसे यह कहते थकते नहीं थे कि उसे मानवाधिकारों पर सजग होना चाहिए, किन्तु अब उन्हें यह बताना मुश्किल पड़ रहा है कि आखिर यूरोप इस आग में क्योंकर जल रहा है? जाहिर तौर पर कई कारण इसके पीछे गिनाए जा सकते हैं, जिसमें बहाबी विचारधारा से लेकर सीरिया के शरणार्थियों तक को दोष दिया जा सकता है, किन्तु सबसे सटीक जो कारण सामने आया है, उसे बताया है पोप ने! न केवल उन्होंने आतंक के पीछे के एक प्रमुख कारण को साफगोई से बताया है, बल्कि मानवता को लेकर एक मिशाल भी पेश करने की पहल की है.


रोमन कैथोलिक चर्च के पोप फ्रांसिस ने धार्मिक सद्भावना का संदेश देने के लिए रूढ़िवादी, मुस्लिम, हिंदू और कैथोलिक शरणार्थियों के पैर धोएं हैं. उन्होंने सभी को एक ही ईश्वर की संतान घोषित किया तो मार-काट की निंदा करते हुए उसे ‘युद्ध की मुद्रा’ ठहराया है. सबसे दिलचस्प बात जो पोप के कथन में सामने आयी, वह हथियारों की होड़ को लेकर था. उन्होंने साफ़ कहा कि ‘हथियार उद्योग से लोगों को खून का प्यासा बनाया जा रहा है.’ पोप फ्रांसिस ने भाईचारे की यह मिसाल ऐसे समय में दी है, जब ब्रसेल्स हमलों के बाद मुस्लिम विरोधी भावनाएं और भी तेज़ी से बढ़ी हैं. ऐसे में पोप फ्रांसिस का यह कहना कि  हमें शांति से रहना चाहिए और मानवता की रक्षा करनी चाहिए, बेहद महत्वपूर्ण है. पोप ने बड़ी हिम्मत की है, क्योंकि हथियारों की दौड़ को बढ़ावा देने वाले मुख्य लोगों में वैश्विक स्तर पर ईसाई समुदाय के लोग ही काबिज़ हैं, जिन्हें सन्देश देने के लिए पोप से बेहतर दूसरा विकल्प क्या होता भला! हमें यह स्वीकारने में क्यों संकोच होना चाहिए कि अगर, छोटे हथियारों से लेकर बड़े रॉकेट लॉन्चर तक आज आतंकवादियों के तमाम समूहों के पास हैं तो वह कहीं न कहीं हथियारों की मार्केट बनाने और उसमें सप्लाई करने वालों के कारण ही हैं. कंप्यूटर की दुनिया में हम सब सुनते थे कि तमाम एंटीवायरस कंपनियां पिछले दरवाजे से पहले वायरस को फैलाती हैं तो उनके एंटीवायरस की बिक्री आसान हो जाती है. सुनने में यह अजीब है, किन्तु क्या यह बात सच नहीं है कि आतंकी समूहों को खड़ा करने में हथियार के इन्हीं सौदागरों का बड़ा हाथ है. यहाँ तक कि आज समूचे विश्व के लिए खतरा बन चुके इस्लामिक स्टेट के प्रसार में भी कई देशों का सीधा हाथ बताया गया है तो तेल के बदले तुर्की इत्यादि देशों पर इन आतंकियों को हथियार सप्लाई करने का सीधा आरोप तक लगा है. सीरिया में जिस तरह वर्चस्व की लड़ाई में समूची वैश्विक शक्तियां उलझी हुई हैं, उससे पोप का कथन बिलकुल सही साबित होता है. निश्चित रूप से हथियारों की मार्केट और आतंक में वैश्विक सम्बन्ध जगजाहिर हो चुका है.


कुछेक बातें जो गौर करने लायक हैं वह पोप और ताकतवर ईसाई लॉबी को भी समझनी होगी कि अब सिर्फ शरणार्थियों के पाँव धोने और हथियारों की मार्केट के बारे में टीका-टिप्पणी करने भर से काम नहीं चलेगा, बल्कि हथियारों की अवैध दौड़ को बढ़ावा देने वाले देशों पर दबाव भी बनाना पड़ेगा, जिससे दुनिया को जंग में झोंकने से पहले वह इसके परिणाम के बारे में सोचने पर मजबूर हो जाएँ. निश्चित रूप से यूरोप के भी कई देश इस रेस को बढ़ावा देने में शामिल रहे हैं तो कई समृद्ध इस्लामिक देश भी इस मामले में अपना हाथ खुल कर सेंकते हैं. अमेरिका और लादेन का सम्बन्ध भला कौन नहीं जानता तो चीन द्वारा पाकिस्तान को हथियार का नया अखाड़ा बनाने से भारत सहित पूरा वैश्विक समुदाय चिंतित है. जरा गौर कीजिये, सामान्य और कुछ विध्वंसक हथियार जब आतंकियों के हाथ में है और दुनिया इतनी परेशान है और अगर हथियारों की यह दौड़, खुदा-न-खास्ता परमाणु हथियार और आतंकवादियों का मिलन करा दे तो ब्रुसेल्स और फ़्रांस में निर्दोष नागरिक जहाँ सैकड़ों में मारे जा रहे हैं, उनकी संख्या लाखों में कब हो जाए, इस बात की गारंटी देने की हालत में कौन है भला? आखिर, परमाणु हथियारों की तस्करी और उसके आतंकियों के हाथों में जाने की रपट कई वैश्विक एजेंसियां पहले ही दे चुकी हैं. आगे जब हम इस कड़ी में विचार करते हैं तो स्पष्ट होता है कि हथियारों की दौड़ के अतिरिक्त, उदार इस्लाम को बढ़ावा देने वालों में भरोसा जताना आतंक को रोकने में दूसरा बड़ा फैक्टर साबित हो सकता है. पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे ही एक कार्यक्रम में बहुत सटीक वक्तव्य दिया, जिसे समूचे विश्व को एक बार जरूर आजमाना चाहिए. वर्ल्ड सूफी फोरम के कार्यक्रम में पीएम ने कहा कि सूफी पुरानी परंपराओं और विश्वास की फुहार है. ऐसे में जब, आतंकवाद लोगों को बांट रहा है और बर्बाद कर रहा है, हर तरफ हिंसा की छाया गहरी होती जा रही है, तो सूफी एक उम्मीद की किरण है. यह खुद में शांति, सहिष्णुता और प्यार का संदेश देती है.’ साफ़ है कि जब पूरा विश्व आतंक की आग में जल रहा है ऐसे में भारत की जमीन पर खुलेपन और उदारता से यहाँ फैला सूफिज्म दुनिया भर के लोगों के लिए एक मजबूत शांति आधार की तरह है तो पोप का खुला उद्गार और भगवान कृष्ण की तरह लोगों के चरण धोना एक नयी राह खोलने का द्वार! हाँ, इस दरमियान हथियार के सौदागरों के खिलाफ पूरी दुनिया को एक सूर में सख्ती दिखानी होगी, इस बात में कहीं कोई संदेह नहीं होना चाहिए, क्योंकि हथियारों के व्यापारी अधिक से अधिक युद्ध और लड़ाई में यकीन रखते हैं, यह बात बार-बार, लगातार साबित हो चुकी है. यदि आंकड़ों पर गौर किया जाय तो, पिछले साल आयी स्टॉकहोम स्थित थिकटैंक इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2010 से 2014 के बीच विश्व भर में हथियारों के कारोबार में पिछले पांच सालों के मुकाबले करीब 16 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है . गौरतलब है कि दुनिया भर में हथियारों का सालाना व्यापार कई अरब डॉलर का है, जिसमें अमेरिका काफी मजबूती से आगे बना हुआ है और परंपरागत हथियारों के कुल वैश्विक निर्यात में उसका हिस्सा करीब 31 फीसदी है. जाहिर है, इन हथियारों की खपत भी सुनिश्चित की जाती है जिसका एक बड़ा हिस्सा कहीं न कहीं आतंकियों के पास भी जाता ही है. सिपरी की रिपोर्ट के अनुसार 27 फीसदी हिस्सेदारी से साथ रूस दुनिया भर में हथियारों के निर्यात के मामले में दूसरे नंबर पर है. तीसरे स्थान पर आने वाले चीन की हिस्सेदारी दोनों चोटी के निर्यातकों से कम जरूर है, किन्तु यह काफी तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है. कुल वैश्विक निर्यात में लगभग पांच प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ जर्मनी और फ्रांस भी चीन से बहुत पीछे नहीं हैं. इन आंकड़ों में ध्यान देने वाली बात यह भी है कि हथियारों की खरीदारी करने वाले ज्यादातर देश एशिया में हैं. भारत हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार है जो 15 फीसदी आयात करता है. दूसरे नंबर पर पांच फीसदी खरीद के साथ सउदी अरब और चीन हैं.


चीन एक ओर हथियारों की खरीद कर रहा है तो दूसरी ओर वह बड़े पैमाने पर हथियार बेच भी रहा है. पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार चीनी निर्यात का दो-तिहाई से भी बड़ा हिस्सा खरीद रहे हैं. चीन के कुल निर्यात का 41 फीसदी तो अकेला पाकिस्तान ही खरीदता है. साफ़ है कि बड़े और संपन्न कहे जाने वाले देश हथियारों की मार्केटिंग के लिए विश्व शांति को दांव पर लगाने में ज़रा भी परहेज नहीं करते हैं. आगे इस रिपोर्ट की बातों को दुहराते हैं तो बीते पांच सालों के दौरान चीन से हथियारों का निर्यात करने वाले देशों की सूची में अफ्रीका के 18 देश भी शामिल हैं, मतलब अफ्रीका के खाली बाजार को भी एशिया की तरह अशांत करने की योजना बड़े और विकसित देश बखूबी बना चुके हैं. रूस अपने सबसे बड़े खरीदार भारत को उसके कुल हथियार आयात का करीब 70 फीसदी मुहैया कराता है. बात अगर अमेरिका की करें तो हथियार खरीदने वाले बहुत ज्यादा बिखरे हुए हैं. अमेरिकी हथियारों का सबसे बड़ा ग्राहक दक्षिण कोरिया है. इसी कड़ी में, बीते पांच सालों में यूक्रेन और रूस में हथियारों के निर्यात में बढ़ोत्तरी हुई है. सिपरी की रैंकिंग के यह सारे आंकड़े सौंपे गए हथियारों की मात्रा पर आधारित हैं, उनके मूल्य पर नहीं. पिछले पूरे दशक के दौरान हथियारों के व्यापार का बाजार काफी बढ़ा है. दुनिया के 58 देश हथियारों का निर्यात करते हैं जिनमें सबसे आगे है अमेरिका. यह सुपर पावर 96 देशों को हथियार भेजता है, जिनमें सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात उसके सबसे बड़े खरीदार हैं. सोचना मुश्किल नहीं है कि इस्लामिक स्टेट के पास जो हथियार हैं, वह अमेरिका के ही हैं जो विभिन्न चैनलों के माध्यम से उनके पास पहुँच रहे हैं और वह दुनिया की शांति सीना ठोक कर भंग कर रहे हैं. काश, पोप की ही तरह दुनिया के और लोग और संगठन सामने आएं और अमेरिका, यूरोपीय देश, रूस और चीन सहित हथियार आयातकों से कड़ाई से कह सकें कि ‘वह विश्व शांति को खतरा उत्पन्न न करें, क्योंकि वह भी अंततः इस विश्व में हैं.’ आतंकी उन्हीं के हथियारों से उन्हीं को नष्ट करने का जोखिम लेंगे ही और यह बात 9/11 के बाद से ही अमेरिका और यूरोप की आँखों के सामने साबित होती जा रही है. इसलिए, इन सबको पोप की सलाह माननी ही चाहिए, अन्यथा ‘जैसी करनी, वैसी भरनी’ का सार्वत्रिक सिद्धांत तो लागू होगा ही!

– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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