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सैनिकों की कब्र पर आंसू से पहले…

Mithilesh's Pen
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अभी ज्यादे दिन नहीं हुए, जब  बीते 15 नवंबर 2015 और इस साल 4 जनवरी को दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर (लद्दाख) में बर्फीला तूफान आया था. उस तूफान में सैन्य गश्तीदल को जानमाल की हानि हुई थी, जिसमें चार जवान शहीद हो गए थे. अचानक तेज हवाओं के साथ बर्फीला तूफान शुरू होने की घटनाओं से बचने के लिए सेना पूर्व तैयारी पर जोर देती रही है. इस घटना को ज्यादे दिन हुए भी नहीं थे कि एक और दुःखद घटना में भारतीय सेना के कई सैनिक शहीद हो गए. इसी क्रम में, विशाखापट्टनम में अंतर्राष्ट्रीय मेरिटाइम कांफ्रेंस को संबोध‍ि‍त करने हुए रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने स‍ियाचिन में 10 सैनि‍कों की शहादत पर अफसोस जताया और कहा कि हमने स‍ियाचिन पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए अब तक लगभग एक हजार सैनिक खो दिए हैं. जाहिर है, यह एक ऐसा आंकड़ा है जो हमारे सैनिकों की जान जाने का दर्द पूरे देश को महसूस कराती है. हालाँकि, रक्षा मंत्री ने स‍ियाचिन से सेना के हटाए जाने के सवाल पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया और इतना ही कहा कि सि‍याचिन राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला है. उन्होंने कहा, ‘वहां (स‍ियाचिन) की भागौलिक स्थ‍ि‍ति ऐसी है कि उस इलाके पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए हम एक हजार सैनिक खो चुके हैं. हाल के दिनों में सुविधाएं बेहतर होने के बाद वहां जवानों की शहादत में कमी आई है, लेकिन एक भी सैनिक की शहादत से रक्षामंत्री परेशान हो जाते हैं, जो उन्होंने अपने बयान में साफ़ तौर पर कहा भी!  गौरतलब है कि हाल ही में सियाचिन ग्लेशियर पर हिमस्खलन के दौरान फंसे 10 सैनिकों की मौत हो गई, जिसमें एक जेसीओ भी शामिल थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस हादसे पर अपने ट्वीट में संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि ”सियाचिन में सैनिकों की मौत काफ़ी दुखद है. मैं उन सैनिकों को सलाम करता हूँ जिन्होंने देश के लिए अपना जीवन दे दिया. परिजनों को मेरी संवेदनाएं.” हिमस्खलन के दूसरे दिन भी बचाव का काम जारी रहा थे लेकिन पहले से ही किसी के भी बचने की संभावना बेहद कम थी क्योंकि यह काफ़ी ख़तरनाक भूस्खलन था.

19600 फ़ीट की ऊंचाई पर जो आर्मी पोस्ट इसके दायरे में आई वह मद्रास बटालियन की थी. उत्तरी कमान के आर्मी कमांडर लैफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा एवं जम्मू कश्मीर के राज्यपाल ने सैनिकों के परिवारों के प्रति संवेदना जताई है. ऐसा भी नहीं है कि इस पूरे मामले को लेकर सिर्फ भारत ही नुक्सान उठाता हो, बल्कि पाकिस्तान ने भी इसको लेकर बड़े नुक्सान उठाये हैं. पिछले सालों में पाकिस्तान के भी 100 से ज्यादा सैनिक एक झटके में भूस्खलन जैसी आपदाओं में जान गँवा चुके हैं. इसी को लेकर पाकिस्तान के रक्षा मंत्री अहमद मुख्तार ने जून 2012 में एक साक्षात्कार में कहा था कि दोनों मुल्कों की हुकुमतें सियाचिन का मसला सुलझाना चाहती हैं लेकिन भारत और पाकिस्तान का परंपरागत सम्बन्ध इसमें रूकावट हैं. उन्होंने तब कहा था कि सियाचिन से दोनों देशों में से किसी को कुछ हासिल नहीं होगा और ये महज अहं का मामला है, जो लगातार सैनिकों की जान ले रहा है. जाहिर है कि एक तरफ तो पाकिस्तान इस मामले को सुलझाने की बात करता है, किन्तु दूसरी ओर उसने कई ऐसे उपकरणों का आयात किया है, जो ज्यादा ऊंचाई और ठंढ में उपयुक्त होते हैं. इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान के घुसपैठिये हर रोज तैयार रहते हैं कि सेना की दबिश कम हो और वहां से वह अपना रास्ता बनाएं! जाहिर है, यह सारा मसला सैन्य परिप्रेक्ष्य में है! जहाँ तक बात भारतीय पक्ष की है तो कई सौ करोड़ अतिरिक्त खर्च करने के बावजूद अगर हमारे सैनिकों की जान जा रही है तो यह न केवल दुखद है, बल्कि कहीं न कहीं हमारी कमजोरी को उजागर भी करता है! इसलिए रक्षामंत्री को इस बारे में मुकम्मल तैयारी करने का साहस दिखाना चाहिए, बजाय कि दुःख और सांत्वना व्यक्त करने के! इस मसले पर अगर कोई यह सलाह दे कि पाकिस्तान के साथ बातचीत अथवा सियाचिन के मुद्दे पर कोई समझौता किया जाना चाहिए, तो यह कतई व्यवहारिक और स्थाई फैसला नहीं होगा. इससे बेहतर वहां सैनिकों के लिए सुगमता और ज्यादे से ज्यादे अत्याधुनिक सुविधाओं से लैश किया जाना ही वर्तमान में एकमात्र विकल्प है, जिसे आजमाया ही जाना चाहिए!

मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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