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जंग लगे हथियार किस काम के

Mithilesh's Pen
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हाल ही में, ग्लोबल फायरपावर संस्थान ने दुनिया भर के 10 देशों की सबसे ताकतवर मिलिटरी पावर को रैंक दिया. इसमें 68 देशों के डिफेंस फोर्सेज को रैंकिंग के लिए कई मानकों पर परखा गया, जिसमें भारत को चौथे स्थान पर रखा गया. इस आंकलन में मैन पावर, लैंड सिस्टम, एयर पावर, नेवी पावर, संसाधन, सैन्य संचालन के साथ वित्तीय और भौगोलिक क्षेत्र को मानक बनाया गया. इसी आंकलन के अनुसार भारत का डिफेंस बजट जहाँ $44,282,000,000 का है, वहीं देश में सक्रिय मिलिटरी कर्मियों की संख्या 1,325,000 और लेबर फोर्सेज 487,600,000 की संख्या में मौजूद हैं. देश में कुल एयरक्राफ्ट 1,962 हैं तो कुल नेवी ताकत 170 बताया गया है. इन आंकड़ों के अतिरिक्त, भारत अभी लगातार रक्षा सौदों को परवान चढाने में लगा हुआ है. जाहिर है, इस पूरे मामले से इतर लेख की हेडिंग को जोड़ें तो कहीं न कहीं संशय उभरता है और यह बात भी सामने आ ही जाती है कि ‘जंग लगे हथियार’ किस काम के! इसी सन्दर्भ में राकेश ओम प्रकाश मेहरा की आमिर खान अभिनीत बहुचर्चित फिल्म ‘रंग दे बसंती’ अपने आप में एक लीजेंड फिल्म थी. करप्शन, युवा मानसिकता और एक हवाई दुर्घटना के प्लॉट पर बनी इस फिल्म का दृश्य एक बार फिर वर्तमान गृहमंत्री राजनाथ सिंह के सामने उपस्थित हो गया जब विमान हादसे में शहीद हुए एसआई रवींद्र कुमार की बेटी सलोनी ने जब राजनाथ सिंह से यह सवाल कर दिया कि बीएसएफ को इतना पुराना विमान उड़ाने की इजाजत क्यों दी गई थी? रोते हुए उस अनाथ ने कहा, सर! इतना पुराना जहाज उड़ाने की क्या जरूरत थी? जवाब दीजिए? सलोनी ने दूसरा सवाल किया कि हर बार सिपाही का ही परिवार क्यों रोता है? मुझे जवाब दीजिए सर? सलोनी के सवालों को सुनकर गृहमंत्री भावुक दिखे और उन्हें रुमाल निकालकर अपने आंसू पोंछे. यह समय था दिल्ली के द्वारका में विमान हादसे में मारे गए सीमा सुरक्षा बल के 10 कर्मियों को गृहमंत्री राजनाथ सिंह द्वारा श्रद्धांजलि देने का.

गृहमंत्री ने दिल्ली के सफदरजंग हवाई अड्डे में तिरंगे में लपटे इन कर्मियों के पार्थिव शरीर पर पुष्पचक्र अर्पित किए और इस दौरान ही एसआई रवींद्र कुमार की बेटी ने उनसे सवाल किया. गौर हो कि दिल्ली से तकनीशियनों को लेकर रांची जा रहा बीएसएफ का 20 वर्ष पुराना एक विमान उड़ान भरने के कुछ ही समय बाद इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के समीप द्वारका में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और उसमें आग लग गई थी जिससे विमान में सवार सभी 10 लोगों की मौत हो गई. यह पूरी घटना आप देखें तो इसमें ‘रंग दे बसंती’ फिल्म की तरह ही पृष्ठभूमि है तो बिमानों के पुराने होने पर उठा हुआ यह पहला सवाल नहीं है. पहले भी सुखोई समेत तमाम दुर्घटना में वायुसेना के पायलट अपनी जान गँवा चुके हैं. संयोग से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के दौरे पर हैं, जहाँ अहम वार्ता हथियारों की खरीफ-फरोख्त को लेकर होनी है. दोनों देशों के सैन्य और सामरिक रिश्ते इसलिए भी काफ़ी अहम हो जाते हैं क्योंकि भारत की तीनों फ़ौज की इंवेंटरी का सात फ़ीसद रूस से मिलता है. भारत के पास मौजूद टैंक, लड़ाकू विमान, पनडुब्बियां और आधुनिक जितने भी विध्वंसक हथियार हैं, वो सब भारत ने रूस से लिए हैं. रूस के लिए भी भारत इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि भारत एक बड़ा हथियार आयातक देश है. ऐसे में भारतीय पक्ष को इस बात में बेहद आश्वस्त होने की आवश्यकता है कि कहीं ऑउटडेटेड हथियारों को हमारे देश में न खपा दिया जाय! भारत और रूस के बीच जिन अहम सामरिक समझौतों पर बात हो रही है, अबकी बार उनमें एक फ्रिगेट पर हस्ताक्षर शामिल है, तो एंटी मिसाइल डिफ़ेंस सिस्टम पर भी बात होनी है. इसके साथ परमाणु पनडुब्बी और ब्रह्मोस मिसाइल जैसी क्षमताओं के विकास में रूस के साथ भागीदारी की अहम भूमिका रही है.

ऐसे मामलों में हमें और भी सजग होने की आवश्यकता है, कि कहीं हम ऑउटडेटिड हथियारों की कब्रगाह न बन जाएँ! इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि दुनिया में तमाम द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सम्बन्ध बदल रहे हैं और बदलती दुनिया में भारत को भी राजनीतिक, कूटनीतिक, आर्थिक और सामरिक संबंध बड़े देशों के साथ सही तरीके से सही पटरी पर रखना आवश्यक हैं. जब भारत के रिश्ते अमरीका के साथ बेहतर हो रहे हैं, चीन के साथ नए विकल्पों पर बात हो रही है तब रूस के साथ पुराने रिश्ते की समीक्षा कर उसे नए मोड़ पर लाने की ज़रूरत पर विशेषज्ञ बल दे रहे हैं. मगर इन तमाम उहापोह की स्थितियों से निपटने के लिए हथियारों का अपग्रेडेशन बेहद आवश्यक तत्व बन गया है. इसके साथ ही साथ हथियारों के दलालों पर निर्भरता कम किये जाने की आवश्यकता भी है, क्योंकि दलाल किसी भी क्षेत्र के हों, उनका मकसद सौदे और कमीशन तक ही होता है. तकनीकी रूप से हमें यह समझना होगा कि हथियारों की ‘टेस्टिंग’ एक अलग बात है तो दूसरी ओर उन हथियारों के साथ ‘युद्ध-क्षेत्र’ में उतरना बिलकुल अलग बात! इसे कुछ यूं समझ सकते हैं कि देशी कट्टे और पिस्टल में शुरूआती स्तर पर कुछ ज्यादे फर्क नहीं होता है, किन्तु अगर इन्हें लगातार इस्तेमाल किया जाय तो कट्टे कब फायर करने वाले की ही जान ले लें, इसकी गारंटी नहीं! इन सबसे बेहतर बात तो यह होगी कि आप देश में ही शत-प्रतिशत हथियार निर्माण और उसके तकनीकी विकास पर ध्यान दें, अन्यथा उनके जंग लगने की स्थिति में नुक्सान उठाना ही पड़ेगा! हालाँकि, कई व्यवहारिक समस्याएं हैं, किन्तु तमाम व्यवहारिकताओं के बावजूद अगर हथियारों के जंग लगने की सम्भावना उठे तो … समस्या अति गंभीर हो जाती है!

– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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