Menu
blogid : 19936 postid : 1121538

संसद को बंधक बनाना कितना उचित?

Mithilesh's Pen
Mithilesh's Pen
  • 361 Posts
  • 113 Comments

भारतीय राजनीति में यह सबसे बड़ी बिडम्बना रही है कि यहाँ बात-बेबात संसद को न चलने की धमकी दी जाती है और उस धमकी पर तमाम सांसद बखूबी अमल भी करते हैं. एक मजबूत शख्शियत के रूप में अपनी पहचान बना चुके हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मामले को लेकर बेहद परेशान हो जाते होंगे, जब उनके तमाम जतन के बावजूद संसद का कामकाज ठप्प दिखता होगा. सहिष्णुता-असहिष्णुता पर सरकार ने पहले ही विपक्ष की सारी बातें मानकर संसद में लम्बी चर्चा की और तमाम वरिष्ठ मंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री ने भी इस मामले में बयान दिया. यह मामला जैसे तैसे टला कि कांग्रेसी शैलजा की किसी मंदिर में घुसने और उनकी जात पूछने को लेकर हंगामा शुरू हो गया. सफाई आने के बाद थोड़ी हवा साफ़ हुई तो नेशनल हेराल्ड का मामला सामने आ खड़ा हुआ. भारतीय जनता पार्टी की समस्या यह है कि वह एक समस्या को सुलझाने का प्रयास करती है तो दूसरी समस्या उतनी ही तेजी से आन खड़ी होती है. संसद के पिछले सत्रों में कांग्रेसी रवैये से परेशान प्रधानमंत्री मोदी ने इस बार सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को बाकायदे चाय पिलाकर इस बात का माहौल बनाने की कोशिश करी कि जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण विधेयक तो कम से कम पास हो जाएँ. लेकिन, सुब्रमण्यम स्वामी जैसों को राजनीति से ज्यादा मतलब अपने स्टैंड से है. बिचारे, कोर्ट-कचहरी और गांधी परिवार को निशाने पर लिए रहते हैं. संयोग से, इस बार दिल्ली हाई कोर्ट ने सोनिया गांधी और उनके सुपुत्र राहुल को व्यक्तिगत पेशी से छूट देने से इंकार कर दिया और कांग्रेस संसद से पार्टी कार्यालय और दस जनपथ तक उबल पड़ी. सोनिया गांधी ने ताल ठोकते हुए तत्काल याद दिलाया कि वह इंदिरा गांधी की बहू हैं, किसी से डरती नहीं हैं!

अब सवाल यह है कि एक अदालती समन से ‘डर’ कैसा? खैर, राहुल गांधी भी ‘बाहें’ चढाने से पीछे नहीं हटे और उन्होंने तत्काल इस पूरी उहापोह को अपनी ओर खींचने की कोशिश करते हुए कह डाला कि चूँकि वह संसद में वह सवाल पूछते हैं, इसलिए सरकार ने उनसे बदला लिया है. सवाल … से याद आया कि राहुल गांधी द्वारा पूछा गया एक सवाल फेसबुक/ ट्विटर पर खूब घूमता है कि ‘जब लोकसभा में स्पीकर है, तो वह बजाय क्यों नहीं जाता?’ अब आप इन बातों पर हंस सकते हैं, लेकिन आलिया भट्ट और राहुल गांधी की उत्सुकता भरी सवालों की लिस्ट काफी मिलती-जुलती मानते हैं ये सोशल मीडिया वाले …!! तौबा-तौबा… कहीं आलिया बुरा न मान जाएँ! ऐसे में जब ‘राजमाता और युवराज’ केंद्र सरकार पर हमला बोल रहे हों तो उनके दरबारियों… मतलब कांग्रेसी जनों को भी अपना फर्ज तत्काल याद आ गया और कांग्रेस ने सदन में मुद्दा उठाते हुए जमकर हंगामा किया और इस दौरान कांग्रेस के सांसद वेल में भी उतर गए. ऐसे में बुद्धिमता का परिचय देते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा में कांग्रेस के सामने नेशनल हेराल्ड केस पर फौरन चर्चा का प्रस्ताव रख दिया, मगर कांग्रेस को हंगामा करना था, सो किया और सरकार यह सोचकर परेशान होगी कि ‘स्वामी जैसों के चक्कर में यह सेशन भी गया शायद’! खैर, समस्या सिर्फ एक बार की हो तो कोई और बात है, लेकिन बार-बार संसद को बंधक बनाने की जो होड़ शुरू हो गयी है, वह अंततः हमारे लोकतंत्र और संसदीय प्रणाली पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है. एक तरफ अमेरिका के वाशिंगटन में रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ‘जीएसटी’ बिल के पास होने की उम्मीद जता रहे हैं तो तमाम राज्य और बाहरी निवेशक भी इसको लेकर आशान्वित हैं, किन्तु इनको तो संसद को ठप्प करने का बहाना चाहिए और वह मिल गया. हालाँकि, सरकार की ओर से राजीव प्रताप रूडी ने मोर्चा संभाला और कहा कि कांग्रेस सदन को यह नहीं बता रही है कि विषय क्या है और हंगामा कर रही है. रूडी ने आगे कहा कि सदन में इस समय सूखे के विषय पर चर्चा होनी है और यह 70 करोड़ लोगों का विषय है जो कृषि पर आधारित है, लेकिन कांग्रेस को देश के लोगों और किसानों की कोई चिंता नहीं है.

पर सवाल यह है कि किसानों और गरीबों की चिंता किसे है, उनको तो बस अपना हित साधना है, चाहे कैसे भी! रूडी ने सफाई देने की कोशिश करते हुए यह भी कहा कि सदन से बाहर के किसी मुद्दे को लेकर संभवत: यहां हंगामा किया जा रहा है और जिस मामले पर संभवत: हंगामा किया जा रहा है, वह वर्षों से चल रहा है और हमारी सरकार 16 – 17 महीने पुरानी है. न्यायपालिका के काम में सरकार का सीधे तौर पर कैसे कोई दखल हो सकता है? दिलचस्प बात यह है कि न तो कांग्रेस की ओर से और न ही सरकार की ओर से नेशनल हेराल्ड मामले का सीधा उल्लेख किया गया. जहाँ तक बात नेशनल हेराल्ड मामले की है तो यह इतना सीधा भी नहीं है कि कांग्रेस इससे आसानी से बाहर निकल जाए. नेशनल हेरल्ड अख़बार जिसकी स्थापना 1938 में जवाहरलाल नेहरू ने की थी, एक तरह से कांग्रेस का मुखपत्र माना जाता था. अख़बार का मालिकाना हक़ एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड यानी ‘एजेएल’ के पास था जो दो और अख़बार भी छापा करती थी, हिंदी में ‘नवजीवन’ और उर्दू में ‘क़ौमी आवाज़’. आज़ादी के बाद 1956 में एसोसिएटेड जर्नल को अव्यवसायिक कंपनी के रूप में स्थापित किया गया और कंपनी एक्ट धारा 25 के अंतर्गत इसे कर मुक्त भी कर दिया गया. वर्ष 2008 में ‘एजेएल’ के सभी प्रकाशनों को निलंबित कर दिया गया और कंपनी पर 90 करोड़ रुपए का क़र्ज़ भी चढ़ गया. इसके बाद कांग्रेस नेतृत्व ने ‘यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड’ नाम की एक नई अव्यवसायिक कंपनी बनाई जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित मोतीलाल वोरा, सुमन दुबे, ऑस्कर फर्नांडिस और सैम पित्रोदा को निदेशक बनाया गया. कांग्रेस पार्टी ने इस कंपनी को 90 करोड़ रुपए बतौर ऋण भी दे दिया. बात यहाँ फंस गयी जब खोजी नेता के तौर पर मशहूर सुब्रमण्यम स्वामी ने वर्ष 2012 में एक याचिका दायर कर कांग्रेस के नेताओं पर ‘धोखाधड़ी’ का आरोप लगा दिया. उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि ‘यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड’ ने सिर्फ 50 लाख रुपयों में 90.25 करोड़ रुपए वसूलने का उपाय निकाला जो ‘नियमों के ख़िलाफ़’ है. याचिका में स्वामी ने सीधा आरोप लगाया कि 50 लाख रुपए में नई कंपनी बना कर ‘एजेएल’ की 2000 करोड़ रुपए की संपत्ति को ‘अपना बनाने की चाल’ चली गई.

तमाम किन्तु-परन्तु के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने कांग्रेस के नेताओं की ओर से दायर ‘स्टे’ की याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा कि एक ‘सबसे पुराने राष्ट्रीय दल की साख दांव पर’ लगी है क्योंकि पार्टी के नेताओं के पास ही नई कंपनी के शेयर हैं. जज ने कांग्रेस के नेताओं के वकीलों से कहा है कि वो सोनिया गांधी, राहुल गांधी और उन सब की अदालत में पेशी सुनिश्चित करें जिनको अदालत के सामने पेश होने के समन भेजे गए हैं. अब देखा जाय तो इस पूरे मामले से भाजपा को कोई सम्बन्ध नहीं है, शायद तब तक सुब्रमण्यम स्वामी भाजपा में शामिल ही नहीं हुए थे. ऐसे में सीधा प्रश्न उठता है कि एक कानूनी प्रक्रिया का सामना करने में इतनी घबराहट और होहल्ला क्यों? संसद के गैर जरूरी मुद्दों पर लगातार डिस्टर्ब होने से आने वाले समय में जनता और निवेशक आखिर किस आधार पर उम्मीद करेंगे कि उनके हितों पर संसद में चर्चा होगी, यह बात समझ से बाहर दिखती है! यहाँ तो किसी को समन आ गया तो संसद बंधक बन जाती है, जबकि देश में बरसात हो, कोई शहर डूब जाए, किसान आत्महत्या करते रहें… मगर संसद … वह तो बंधक बन जाती है! इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिर कांग्रेस जनता को क्या सन्देश देना चाहती है? क्या उसे भारतीय लोकतंत्र और न्याय-प्रक्रिया में जरा भी भरोसा नहीं है? यह तमाम प्रश्न अपनी जगह हैं, किन्तु सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या ऐसे गैर-वाजिब मुद्दों पर संसद को बंधक बनाया जाना उचित है? अगर कांग्रेस पार्टी को अपनी उपयोगिता बनाये रखनी है तो उसे इन प्रश्नों का जवाब देना ही होगा, अन्यथा…. जनता सब जानती है!

– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

Hindi article on Indian Parliament and Opposition, National herald case, mithilesh ke lekh,

नेशनल हेराल्‍ड केस, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, दिल्‍ली हाईकोर्ट, अरुण जेटली, सुब्रमण्यम स्वामी, National Herald case, Sonia Gandhi, Rahul Gandhi, Delhi High court, Arun Jailtey, Subramanian Swamy

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh