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बढ़ती सेलरी और प्रदूषण समस्या

Mithilesh's Pen
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हालाँकि, हेडिंग में प्रयोग किये गए दो शब्दों ‘सेलरी और प्रदूषण’ में कोई सीधा-सीधा तालमेल नहीं है किन्तु दिल्ली की सरकार इन दो शब्दों की वजह से ही खूब चर्चा बटोर रही है. दिल्ली की केजरीवाल सरकार, जो अक्सर विवादों में ही रहती है और अपने विधायकों की बेहतहाशा सेलरी बढ़ाने को लेकर वह फिर विवादों में घिर गयी है. एक तरफ दिल्ली सरकार की ओर से विधायकों का वेतन 400 फीसदी बढ़ाने की सिफारिश पर सियासी घमासान शुरू हो गया, क्योंकि खुद को आम आदमी कहने वाले अरविन्द केजरीवाल के इस कदम से दिल्ली के विधायकों की सैलरी देश के प्रधानमंत्री से भी ज्यादा हो जाएगी. इसके विरोध में कांग्रेस ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर के बाहर प्रदर्शन किया तो एक आप विधायक ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाते हुए कहा है कि ‘महंगाई सबके लिए बराबर है’ और इस तरह विधायकों की सैलरी बढ़ाने से समाज में गलत संदेश जाता है. खैर, दिल्ली विधानसभा में केजरीवाल को जितना बड़ा बहुमत है, उससे बहुत कम ही उम्मीद है कि वह सेलरी के विरोध पर अपना कान देंगे, बेशक उनकी कितनी ही आलोचना क्यों न की जाए. यहाँ ज़िक्र करना सामयिक होगा कि दिल्ली विधानसभा में जो प्रस्ताव पारित हुए हैं, वह देश भर में सबसे ज्यादा है और इससे भी बड़ी बिडम्बना यह है कि केजरीवाल ने इस सम्बन्ध में एक नए सिद्धांत को प्रतिपादित करने की बात कही है, जिसके अनुसार ‘अगर विधायकों को कुल मिलाकर ढाई लाख से कम सेलरी मिलती है, तो वह बेईमान हो सकते हैं, भ्रष्टाचार हो सकते हैं.’ अब केजरीवाल को यह बात कौन समझाएं कि देश में आज भी 40 करोड़ से ज्यादे लोग एक समय भूखे सोने को मजबूर होते हैं, तो क्या केजरीवाल के सिद्धांतों के अनुसार वह सब बेईमान, भ्रष्ट और चोर बन जाएँ? अफ़सोस तो यह है कि जिस अम्बानी, अडानी के बहाने पूंजीवादियों पर वह निशाना साधते रहे हैं, उन्होंने वही परंपरा अपनी पार्टी में भी शुरू कर दी है. आखिर, उनका विधायक एक साल में 30 लाख और पांच साल में लगभग डेढ़ करोड़ तो सेलरी के माध्यम से जनता की जेब से निकाल ही लेगा! और अगर दिल्ली विधानसभा के सभी 70 सदस्यों की बात की जाय तो 5 साल में सिर्फ और सिर्फ विधायकों पर खर्च यह राशि 100 करोड़ से ऊपर बैठेगी! जी हाँ! आज भारत की अर्थव्यवस्था बहुत आगे बढ़ चुकी है, किन्तु फिर भी 100 करोड़ की राशि एक मायने रखती है, वह भी सिर्फ 70 विधायकों के ऊपर!

हालाँकि, इस आलोचना से इतर प्रदूषण के मामले में केजरीवाल सरकार ने शुरूआती दौर पर जो कदम उठाने का साहस किया है, उसमें उनकी तारीफ़ अवश्य ही की जानी चाहिए. दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण के स्तर पर चिंता प्रकट करते हुए टिप्पणी की थी कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण का वर्तमान स्तर चिंताजनक स्थिति से ऊपर तक पहुंच गया है और यह गैस चैंबर में रहने जैसा है. इससे पहले अक्टूबर में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ने भी कहा था कि दिल्ली में प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि उनके पोते को भी मास्क लगाकर चलना पड़ता है. दिल्ली में प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता जताने का बाद, कोर्ट परिसर में वायु प्रदूषण मापने का उपकरण भी लगाया गया है. कोर्ट ने टिप्पणी करते समय केंद्र और राज्य सरकार की कार्य योजनाओं को स्पष्ट रूप से नाकाफी बताया और कहा कि इसमें प्राधिकरणों की जिम्मेदारी तय नहीं है और ना काम करने के लिए उन्हें कोई समय सीमा ही दी गई है. अदालत ने स्पष्ट कहा कि दिल्ली में वायु प्रदूषण के दो प्रमुख कारण धूलकण और वाहनों से निकलने वाला धुआं है और केंद्र और दिल्ली सरकार  यह सुनिश्चित करें कि पहले कम से कम धूल हो, अन्यथा किसी इमारत या सड़क का निर्माण नहीं हो. कोर्ट की इन टिप्पणियों के बाद केजरीवाल सरकार तत्काल हरकत में आयी और आनन-फानन में शुरूआती उपायों की घोषणा कर दी, जिसको लेकर चर्चा भी हो रही है. दिल्‍ली में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए केजरीवाल मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए फैसलों में कहा गया है कि हर 3-4 हफ्तों में दिल्‍ली की सड़कों की वैक्‍यूम क्‍लीनिंग की जाएगी यानि सड़कों से पूरी तरह से धूल हटाई जाएगी. इसके साथ ज्‍यादा से ज्‍यादा बसें चलाना, बाहर से दिल्‍ली आने वाले ट्रकों की जांच किया जाना भी शामिल है. कुछ और कड़े प्रयासों, जिनमें यातायात रोकने वाली पार्किंग को हटाने की योजना और दादरी के बिजली प्‍लांट को बंद करने की बात भी कही जा रही है. हालाँकि, जिस फैसले के लिए केजरीवाल की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, वह उनके कैबिनेट द्वारा लिया गया वह फैसला है, जिसमें अब दिल्ली में नंबर के हिसाब से सड़कों पर गाड़ियां चलेंगी. मतलब, 2,4,6,8,0 के नंबर वाली गाड़ियां पहले दिन और 1,3,5,7,9 की गाड़ियां दूसरे दिन चलेंगी. मतलब सम संख्या और विषम संख्या के फार्मूले से दिल्ली में सड़कों पर गाड़ियों की संख्या कम करने की रणनीति तैयार की जा रही है. हालाँकि, यह नियम सार्वजनिक परिवहन पर लागू नहीं किया जाएगा और इसे एक जनवरी से प्रभाव में लिए जाने की बात कही जा रही है. जाहिर है, अगर इस फैसले को नियत समय पर सख्ती से लागू कर दिया जाय तो कोई कारण नहीं है कि दिल्ली में खतरनाक स्तर तक पहुंचे प्रदूषण को नियंत्रण में न लाया जा सके. हालांकि इस फैसले की व्यवहारिकता पर सवाल उठाए जा रहे हैं, लेकिन इसके विपरीत प्रश्न यह भी उठता है कि इसके अलावा दिल्ली के पास रास्ता ही क्या है?

वैसे भी, दिल्ली सरकार ने पिछले महीनों से हर महीने की 22 तारीख को जो कार-फ्री डे मनाने का अभियान चला रखा है, उसका भी मकसद यही है कि दिल्ली में वाहनों की बढ़ती संख्या पर नियंत्रण किया जाय. हालाँकि, इसमें तमाम पेंच सामने आएंगे, यह बात लगभग तय ही है, किन्तु अगर केजरीवाल सरकार इस मुद्दे पर दृढ़ता से आगे बढ़ती है तो दिल्लीवाले शायद 400 फीसदी की सेलरी बढ़ोतरी को, कुछ हद तक ही सही, पचा जाएँ. अन्यथा, दिल्ली की जनता को प्रदूषण की मार के साथ-साथ ‘आम आदमियों’ की जबरदस्त सेलरी बढ़ोतरी को भी बर्दाश्त करना ही होगा! प्रदूषण के बढ़ते स्तर को हम इस तरह समझ सकते हैं कि दिल्ली के सबसे प्रदूषित इलाके आनंद विहार का एयर क्वालिटी इंडेक्स 703 है, वहीं हमारे पड़ोसी चीन के बीजिंग के सबसे प्रदूषित इलाके लियू लियानज़िन का एयर क्वालिटी इंडेक्स 74 है। यानी दिल्ली का प्रदूषण तकरीबन 9 गुना है. वहीं, दिल्ली के सबसे कम प्रदूषित इलाके मंदिर मार्ग का एयर क्वालिटी इंडेक्स 290 है, तो बीजिंग के हुआइरऊ इलाके का 30, यानी दिल्ली से तकरीबन 9 गुना कम. गौर करने वाली बात यह भी है कि एक समय बीजिंग का एयर क्वालिटी इंडेक्स 450 तक पहुंच चुका था जो कुछ एहतियात बरतने के बाद महज 30 तक आ गया. उम्मीद की जानी चाहिए कि विधायकों की सेलरी पर मोटा खर्च करने वाले अपने कुछ समझदार विधायकों, नौकरशाहों को इस मामले में स्टडी पर लगाएंगे और दिल्ली का एयर इंडेक्स कम से कम 50 के भीतर लाने में सफल रहेंगे! अन्यथा, यकीन करिये अगली बार उन्हें 400 फीसदी बढ़ी हुई सेलरी उठाने का मौका जनता शायद ही दे! हाँ! अगर, दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण में वह सफल रहे तो न केवल उनके पढ़े-लिखे होने पर मुहर लगेगी, बल्कि उनकी असल प्रशासनिक क्षमता का भी प्रथम-दर्शन दिल्ली की जनता को हो सकता है!

– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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