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कांग्रेस, सिक्ख और पंजाब प्रदेश

Mithilesh's Pen
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कांग्रेस उपाध्यक्ष और युवराज कहे जाने वाले राहुल गांधी जिन समस्याओं से सबसे ज्यादा चिंतित नज़र आते हैं, उसमें पंजाब में नशे के फैलते हुए दायरे का ज़िक्र वह कई बार कर चुके हैं. अच्छा है, एक राष्ट्रीय पार्टी के शीर्ष नेता को समस्याओं की फ़िकर होनी ही चाहिए, किन्तु तब स्थिति विपरीत हो जाती है जब खुद फ़िक्र करने वालों पर ही आतंकवाद, अलगाववाद फ़ैलाने जैसे गंभीर आरोप लगा दिए जाएँ, वह भी राज्य के उप मुख्यमंत्री द्वारा. जब भी सिक्खों और पंजाब के साथ कांग्रेस का ज़िक्र आता है, तब अतिरिक्त सावधानी बरतने के बाद भी इतिहास की बुरी यादें आ ही जाती हैं. पंजाब के उप मुख्यमंत्री ने कांग्रेस पर सीधा आरोप लगाया है कि वह अलगाववादी ताकतों को बढ़ावा दे कर पंजाब में समस्या उत्पन्न कर रही है. बादल ने न केवल आरोप लगाया, बल्कि इसके बारे में तर्क भी दिया है कि अमृतसर में एक कार्यक्रम में कांग्रेस नेता चरमपंथी और अलगाववादी तत्वों के साथ गलबहियां कर रहे थे, जहां खालिस्तान की मांग प्रमुखता से बुलंद की गई. कांग्रेस को समझना चाहिए कि खालिस्तान और भिंडरावाले का इतिहास इतना भी पुराना नहीं हुआ है कि लोगबाग इतनी जल्दी इसे भूल जाएँ. ऐसी स्थिति में कांग्रेस को यह चाहिए कि देश की जनता द्वारा बुरी तरह नकार दिए जाने के बाद वह अनाप-शनाप और राष्ट्रविरोधी राजनीति को सिरे से खारिज करे.

इस क्रम में अगर पंजाब के उप मुख्यमंत्री ने सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप ही किया होता तो बात कुछ और होती, लेकिन उन्होंने इसे लेकर केंद्रीय गृह-मंत्रालय और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से भी मुलाकात की और मांग की कि कांग्रेस के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और उसकी मान्यता खत्म की जानी चाहिए. गौर करने वाली बात यह भी है कि इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का विशेष ज़िक्र करते हुए कहा गया कि कांग्रेस उपाध्यक्ष के नेतृत्व में पार्टी पंजाब में वैसा ही माहौल पैदा करना चाहती है जैसा आतंकवाद के दौर में इस राज्य ने भुगता है. बादल ने ‘‘सरबत खालसा’’ का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने बेअंत सिंह की हत्या के दोषी को जत्थेदार बनाया है और सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो हैं जिनमें दिखाया गया है कि कांग्रेस नेता अलगाववादियों को निर्देश दे रहे हैं कि उन्हें क्या कहना और करना चाहिए! ज़ाहिर है, इस तरह के गंभीर आरोप लगाने से पहले पंजाब के उप मुख्यमंत्री ने अपना होमवर्क भी किया ही होगा, अन्यथा जिम्मेदार लोगों द्वारा गलत बयानी पर विश्वास का खतरा उत्पन्न हो जाता है. सुखबीर बादल ने अपने बयान की मजबूती के लिए कुछ कांग्रेसी नेताओं का ज़िक्र भी किया और यह दावा किया कि कांग्रेस नेताओं ने जमावड़े और खालिस्तान को ‘अन्य तरह के समर्थन’ भी दिए. अब यह जांच का विषय है कि वह ‘अन्य’ तरह के कौन से समर्थन हैं, जिनके खुलेआम ज़िक्र से पंजाब के उप मुख्यमंत्री तक ने परहेज किया. बादल ने इस पूरे प्रकरण में पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस नेता अमरिन्दर सिंह को भी लपेटा है.

अकाली नेता सुखबीर ने ज़रा भी ढील न देते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष पर सीधा आरोप लगाया कि राहुल गांधी पंजाब गए थे और ऐसे समय में चरमपंथी तत्वों को प्रोत्साहन दिया था जब पाकिस्तान की आईएसआई पहले ही राज्य में समस्या पैदा करने की कोशिश कर रही थी. खबर तो यह भी आ रही है कि राष्ट्रपति ने उन्हें आश्वासन दिया है कि मामले पर गौर किया जाएगा. इस क्रम में विचार किया जाय तो ज्यादे दिन नहीं हुए जब पुरस्कार वापसी और असहिष्णुता के लपेटे में कांग्रेस भी बुरी तरह घिर गयी थी और और तमाम राजनीतिक दलों के सिक्ख नेताओं ने ऑल पार्टी ग्रुप बनाकर राजीव गांधी से ‘भारत रत्न वापसी’ अभियान को आगे बढ़ाया! पंजाब और विशेष तौर पर खालिस्तानी दौर को लेकर कांग्रेस की सबसे मजबूत और बड़ी प्रतीक मानी जाने वालीं इंदिरा गांधी पर भी प्रश्नचिन्ह उठते रहे हैं और आज फिर अलगाववादियों को बढ़ावा देने का आरोप अगर उसी कांग्रेस पर लग रहा है तो इस पुरानी पार्टी को केंद्रीय स्तर पर कार्रवाई और मंथन दोनों करने की जरूरत है. खुद इस पार्टी को दोषी नेताओं और अभियानों से कई फर्लांग दूर रहने की जरूरत नज़र आती है, अन्यथा पहले से ही जनता द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर उपेक्षित इस पार्टी को ‘कोढ़ में खाज’ का सामना करना पड़ेगा! पंजाब प्रशासन को भी इस मामले में आरोप-प्रत्यारोप से आगे बढ़कर उच्च-स्तरीय जांच समिति बनानी चाहिए और ऑफिशियल रूप से कार्रवाई की अनुशंसा करनी चाहिए.

आखिर, केंद्र में भी अकाली समर्थित सरकार चल रही है और चूँकि राज्य और केंद्र सरकार में बैठे लोग खुद को राष्ट्रवादी कहते हैं, इसलिए उनके ऊपर कहीं बड़ी जिम्मेदारी है कि इस मामले को राजनीतिक से ज्यादा प्रशासनिक समझकर सख्ती से निपटें. पंजाब जैसे संपन्न और खुशहाल राज्य का यह दुर्भाग्य रहा है कि वह कभी नशे तो कभी धार्मिक विवाद और उससे भी आगे बढ़कर अलगाववाद के लिए चर्चा में रहता है. इस पूरे प्रकरण का केवल और केवल दोष राजनेताओं को जाता है, जिनको राज्य और राष्ट्र के सम्मान से ज्यादा अपनी राजनीति प्यारी है. आखिर, कौन नहीं जनता है कि पाकिस्तान और उसकी आईएसआई की कुत्सित मानसिकता इस राज्य को लेकर कितनी खतरनाक रही है. ऐसे में, इन मामलों पर कांग्रेस पार्टी समेत राज्य और केंद्र सरकार को ज़ीरो टॉलरेंस पर कार्य करने की जरूरत है.

– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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