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लोकतान्त्रिक सोच को गाली न दें!

Mithilesh's Pen
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New Hindi article on Bihar election result 2015, Why BJP and Modi brand faded, deep political analysis - Laloo, Nitishबिहार चुनाव जिस प्रकार से राष्ट्रीय मुद्दे के रूप में चर्चित हुआ और देश भर से पक्ष-विपक्ष दोनों ने जिस प्रकार से पटना में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाया, उससे चुनाव परिणाम खुद-ब-खुद राष्ट्रीय महत्त्व के बन गए. बड़ी जीत के नायक नीतीश कुमार और लालू यादव दोनों ने चुनाव परिणाम के बाद राष्ट्रीय राजनीति में बदलाव की हुंकार भी भरी. चूँकि यह चुनाव बेहद हाई-प्रोफाइल रहा है, इसलिए इसके तमाम आंकलन-विश्लेषण, दांव, राजनीति की व्याख्या हर जगह आसानी से मिल जाएगी, लिखने या बताने के लिए कोई नया समीकरण बचता नहीं है. अपनों की नाराजगी, गाय का गोबर, आरक्षण, जातीय समीकरण, मोदी का लोकसभा कैम्पेनर नीतीश के पक्ष में, जैसे तमाम बहुकोणीय आंकलन आपको पढ़ने के लिए आसानी से उपलब्ध हो जायेंगे. हाँ! हार के बाद भाजपा की पाचन-शक्ति पर चर्चा अवश्य होनी चाहिए कि मात्र डेढ़ साल पहले इंदिरा गांधी और पंडित नेहरू जैसे नेताओं के समकक्ष लोकप्रियता हासिल करने वाले नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में इतनी बड़ी ढलान कैसे?
New Hindi article on Bihar election result 2015, Why BJP and Modi brand faded, deep political analysis - Modi Amit Shahसवाल उठता ही है कि लोकसभा में विशाल जीत हासिल करने वाली भाजपा क्या इस विजय को पचा पाने में असफल रही? क्या मजाक में संघियों और भाजपाइयों के लिए कही जाने वाली बात सच साबित हो रही है कि वह विपक्ष में ही ठीक रहते हैं, जबकि केंद्रीय सत्ता में रहने का उन्हें ढंग ही नहीं पता? चूँकि, हार का डिफ़रेंस इतना बड़ा है कि चाहकर भी प्रधानमंत्री और उनकी नीतियों के साथ उनकी राजनीतिक अपील को इससे दूर नहीं रखा जा सकता है. मैं अपनी व्यक्तिगत बात करूँ तो मुझे भाजपा की इस बुरी हार का अंदाजा नहीं था. मेरी पत्नी मुझसे तमाम मुद्दों पर चर्चा के दौरान कहती थी कि इस बार बिहार में भाजपा की हवा खराब है, लेकिन मैं उसे तर्क देता था कि जनता तमाम समीकरणों के बावजूद ‘व्यापक सोच’ के साथ वोट करती है और मोदी की व्यापक छवि उन सभी चीजों पर हावी रहेगी, ठीक लोकसभा चुनावों की तरह! लेकिन जिस प्रकार से परिणाम आये और भाजपा एक चौथाई सीटों पर सिमट गयी, उसने दिमाग की नसों को झनझना दिया! आखिर 58 और 178 सीटों का बड़ा अंतर नरेंद्र मोदी की छवि पर जनादेश क्यों नहीं माना जाए, इसका कोई ठोस कारण समझ में नहीं आता है. लोग कह सकते हैं कि जातिगत ध्रुवीकरण, आरक्षण, गाय जैसे मुद्दों ने भाजपा को धुल चटाई, किन्तु हमें याद रखना चाहिए कि नरेंद्र मोदी की छवि इन सभी मुद्दों से काफी बड़ी रही है, इस बात में शायद ही किसी को शक हो.
New Hindi article on Bihar election result 2015, Why BJP and Modi brand faded, deep political analysis - RSS and Hinduismनरेंद्र मोदी खुद एक सशक्त मुद्दा रहे हैं और सबसे बड़ा सवाल यही है कि ‘उनका मुद्दा’ मात्र डेढ़ साल में पिट कैसे गया? 90 साल की संघ की मेहनत और त्याग, जनसंघ और भाजपा का लम्बा संघर्ष, बाबरी, गोधरा और गुजरात दंगों के बाद की छवि, विकास और ब्रांडिंग की अंतर्राष्ट्रीय छवि बनाने की अथक मेहनत के बाद हीरे के रूप में चमकने वाले एक और एकमात्र ‘नरेंद्र मोदी’ की चमक इतनी जल्दी धुंधली कैसे हो गयी? लोकसभा जीत के बाद नरेंद्र मोदी के संसद के केंद्रीय कक्ष में दिए गए उस भाषण को याद कीजिये, जब वह आडवाणीजी के ‘नरेंद्र मोदी की कृपा’ शब्द के इस्तेमाल पर रो पड़े थे. तब नरेंद्र मोदी ने कहा था कि आज आपके सामने जो नरेंद्र मोदी खड़ा है, यह उसकी मेहनत या कमाल नहीं है, बल्कि कई-कई पीढ़ियों ने इस संघर्ष में अपना बलिदान दिया, इसलिए आपके सामने आज मैं खड़ा हूँ! फिर उसी सवाल को दुहराना चाहूँगा कि इतने संघर्ष की कीमत आखिर क्यों नहीं समझी गयी और उसे यूं ही जाया होने दिया गया! नरेंद्र मोदी खुद अपने गुजरात के दस स्वर्णिम सालों को कैसे भूल गए, जब वह किसी के ऊपर व्यक्तिगत हमला करने की बजाय, अपना काम करते रहे और धैर्य नहीं खोया. अरुण शौरी का स्टेटमेंट यहाँ गौर करने लायक है, जिसमें उन्होंने मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि पूरे बिहार चुनाव के दौरान नीतीश कुमार ‘स्टेट्समैन’ की भूमिका में दिखे हैं तो प्रधानमंत्री की भाषा ने उन्हें लालू यादव के स्तर पर ला खड़ा किया. इन आंकलनों के अतिरिक्त ‘हिन्दू अतिवादियों’ पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा होता है. ऐसी ही कुछेक लोगों से चर्चा के दौरान वह मुझे यह कन्विंस करने में कि देश को ‘हिन्दू राष्ट्र’ क्यों होना चाहिए, अपनी ऊर्जा झोंक देते हैं!
New Hindi article on Bihar election result 2015, Why BJP and Modi brand faded, deep political analysis - effect on leadersतब मैं चर्चा को आगे बढ़ाने की नियत से उनसे समय सीमा की बात करता हूँ कि भई! तुम्हारा लक्ष्य सही या गलत अपनी जगह हो सकता है, किन्तु मुझे यह बताओ की यह ‘हिन्दू-राष्ट्र’ का लक्ष्य तुम कितने समय में पूरा करना चाहते हो? क्या भाजपा की इस पहली पूर्ण बहुमत की सरकार के पांच साल के दौरान ही अपना लक्ष्य पूरा कर लेना चाहते हो? ऐसे अतिवादियों को अपनी समझ से ही बिहार चुनाव के बाद जवाब देना चाहिए कि जब देश की आबादी के एक हिस्से को मुसलमान बनाने में हज़ार साल से ज्यादा समय तक शासन करना पड़ा, जब देश में कुछ ईसाई बनाने के लिए अंग्रेजों को 200 साल से ज्यादा शासन करना पड़ा तो ‘हिन्दू-राष्ट्र’ के लिए कम से कम 40 – 50 साल, लगातार शासन तो कर लो! साफ़ बात है, अगर भाजपा केंद्र और अधिकांश राज्यों में 50 साल, लगातार शासन ही कर लेती है तो उसका काफी मंतव्य आप ही पूरा हो जायेगा, वगैर किसी अतिरिक्त प्रयास के! इसके लिए, उसे हिन्दुओं को ही तो कन्विंस करके रखना है… और वह डेढ़ साल भी ऐसा न कर सकी! हाय रे ‘हिन्दू-राष्ट्र’! कैसे आएगा तू … !! बिहार के चुनाव परिणाम के बाद कुछ अंधभक्त, विभिन्न माध्यमों में बड़ी असहिष्णुता से प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं कि ‘बिहारी मूर्ख हैं, बिहारी जातिवादी हैं, बिहारी इसी के लायक हैं, बिहारी नाली के कीड़े हैं, बिहारी विकास चाहते ही नहीं …’ यहाँ तक कि अमित शाह ने महागठबंधन को जीत की बधाई व्यंग्यात्मक रूप में देते हुए कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि नयी सरकार बिहार को विकास के पथ पर ले जाएगी! अरे भई! देशभक्ति और पाकिस्तान विरोध के ठेकेदार तो हो ही आप, कम से कम विकास में तो नीतीश जैसे लोगों को थोड़ा बहुत रोल दे दो… !!
New Hindi article on Bihar election result 2015, Why BJP and Modi brand faded, deep political analysis - Shivsenaऔर हाँ! अमित शाह जी, भाजपा के अन्य नेताओं को मिलने के लिए समय दे दिया करो, बिचारे अपने पार्टी अध्यक्ष से मिलने के लिए तरस जाते हैं! हो सके तो, शिवसेना जैसे सहयोगियों से भी कभी-कभार सहयोग का आदान-प्रदान कर लिया करो, आपकी पर पार्टी की सेहत ठीक रहेगी! इस भारी जीत पर बिहारियों को गाली देने वालों को सीधा समझ लेना चाहिए कि उनकी सोच न केवल निरंकुश और असहिष्णु है, बल्कि लोकतंत्र से उसका दूर-दूर तक नाता नहीं है. इस लेख में लालू, नीतीश, राहुल इत्यादि पर चर्चा करने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि यह चुनाव परिणाम विपक्ष को संजीवनी मात्र है. अगर इसे संजीवनी मानकर वह अपना स्वास्थ्य दुरुस्त करती है तो ठीक, अन्यथा उसके लिए ‘दिल्ली दूर’ है अभी!

– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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