Menu
blogid : 19936 postid : 1111130

सुरक्षा-परिषद और भारत-अफ्रीका सम्बन्ध

Mithilesh's Pen
Mithilesh's Pen
  • 361 Posts
  • 113 Comments

कभी कभी किसी मुद्दे को छोड़ देना, छेड़ने से ज्यादा असरकारी होता है और पुरानी कहावत भी है कि ‘मांगे बिन मोती मिले, मांगन मिले न भीख’! आज जिन हालातों में वैश्विक समीकरण उलझे हुए हैं, उसमें भारतीय प्रशासन द्वारा बार-बार सुरक्षा परिषद के लिए रट्टा मारना कुछ उसी तरह से निरर्थक है, जिस प्रकार कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान बेवजह चिल्लाता रहता है. वैश्विक परिदृश्य में, सीरिया मुद्दे पर अमेरिका और रूस में तनातनी है तो दक्षिणी चीन सागर विवाद में अमेरिका द्वारा नौसैन्य अभियान और चीन की चेतावनी गहरे समीकरण की ओर इशारा कर रही है. ईमानदारी से यहाँ सवाल उठता ही है कि क्या वाकई भारत की अभी इतनी हैसियत है कि वह सीरिया मुद्दे पर रूस या अमेरिका के साथ खड़ा हो सके या दक्षिणी चीन सागर विवाद में स्पष्ट रूप से अपना रूख व्यक्त कर सके और सैन्य हस्तक्षेप के लिए सीधे तौर पर निर्णय ले सके? अगर नहीं, तो बेवजह हर मंच पर सुरक्षा परिषद का ढोल पीटने से क्या हासिल होने वाला है. यह ठीक है कि संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में अब तक 1,80,000 से अधिक भारतीय सैनिक भाग ले चुके हैं, जो किसी अन्य देश की तुलना में अधिक हैं, लेकिन हमें अब तक समझ जाना चाहिए कि वैश्विक राजनीति में हम विशेष मुद्दों पर चुप्पी नहीं साध सकते या फिर ‘गुट-निरपेक्ष’ होने का ढोल नहीं पीट सकते! वस्तुतः वैश्विक राजनीति वह आग है, जिसमें शक्ति का सीधा प्रदर्शन होना तय है और भारत अभी इस हाल में भी नहीं है कि वह पाकिस्तान में घुसकर दाऊद इब्राहिम या हाफिज सईद को पकड़ सके, चीन और दुसरे देशों को तो छोड़ ही दिया जाय!

हालाँकि, भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इस सहयोग बढ़ने की पुरजोर वकालत कर रही हैं. भारतीय कंपनियों को अफ्रीकी देशों में निवेश के लिए प्रेरित करते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सम्मलेन के तीसरे दिन कहा कि अफ्रीकी देश कारोबार में वृद्धि के लिए प्रचुर संसाधन और अवसर प्रदान करने वाले हैं और अफ्रीका में किया गया भारत का निवेश दोनों पक्षों के लिए लाभदायक होगा. भारत-अफ्रीका कारोबार मंच को संबोधित करते हुए उन्होंने साफ़ कहा कि आर्थिक वृद्धि और विकास का उतना असर कहीं नहीं दिखता जितना अफ्रीका में दिखता है. विदेश मंत्री ने आंकड़े पेश करते हुए यह भी कहा कि 2014-15 तक एक दशक में भारत और अफ्रीका के बीच व्यापार 10 गुना बढ़कर 72 अरब डालर हो गया लेकिन यह भारत और अफ्रीका के आकार को देखते संभावनाओं से काफी कम है. अफ्रीका में तंजानिया, सूडान, मोजाम्बीक, केन्या और युगांडा सहित कई देशों में तेल एवं गैस के व्यापक भंडार है और भारत भी अपनी आर्थिक वृद्धि को तेज करने के लिये इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश करना चाहता है. जाहिर है, आने वाले समय में यह सम्मेलन दोनों पक्षों में व्यापार बढ़ाने की दृष्टि से मील का पत्थर साबित होने वाला है. इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि दोनों पक्षों के सम्बन्ध कारोबार से आगे निकल रहे हैं, जिसका अहसास भी इस सम्मलेन के दौरान दिखा है. इसमें सामुद्रिक क्षेत्र में मजबूत भागीदारी की इच्छा और वैश्विक राजनीति में दोनों देशों के परस्पर हित भी निश्चित रूप से देखने को मिले हैं. वैसे, इसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का मुद्दा उठाने से बचा जाना चाहिए था, क्योंकि इससे कारोबार पक्ष पर दिया गया जोर थोड़ा मद्धम पड़ गया. हालाँकि, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का यह कहना गलत नहीं है कि जब तक वैश्विक प्रशासन की संरचना अधिक लोकतांत्रिक नहीं होती, तब तक एक अधिक न्यायसंगत अतंर्राष्ट्रीय सुरक्षा एवं विकास की रूपरेखा से विश्व मरहूम ही रहेगा, पर सवाल यह है कि ऐसे महत्वपूर्ण अवसरों पर जनरल बात कहना व्यापारिक अहमियत को कम ही करता है. हालाँकि, भारतीय प्रशासन के इस रूख की तारीफ़ करनी होगी कि वह अफ़्रीकी देशों के आपसी विवादों से खुद को दूर रखने की कोशिश करता आया है, क्योंकि जाहिर तौर पर इससे दोनों पक्षों में व्यापार बढ़ाने की कोशिशों में व्यवधान ही आता.

ठीक ऐसे ही, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सदस्यता का मुद्दा हम उचित मंच पर ही उठाएं तो यह बेहतर परिणाम देने वाला होगा, अन्य अवसरों का प्रयोग हमें व्यापार बढ़ाने और दुसरे संक्षिप्त मुद्दों को निबटाने में करना चाहिए. हालाँकि, दुसरे मुद्दों को भी भारत की ओर से उठाया गया है, जिसमें अफ्रीका के कुछ देशों में आंतरिक और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की हिंसा का मुद्दा प्रमुख है और इसके लिए भारतीय विदेश मंत्री ने आतंकवाद के खिलाफ संधि बनाने पर भी जोर दिया है. इसके अतिरिक्त, भारत और अफ्रीका के बीच कृषि, आधारभूत ढांचे, शिक्षा, कौशल विकास, ऊर्जा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में भी सहयोग की बातें कही गयी तो, लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण की दिशा में काम करने के मामले में भी प्रतिबद्धता व्यक्त की गयी. भारत और अफ्रीकी देशों के बीच सहयोग का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र लोगों तक उत्कृष्ट और सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं और दवाओं को पहुंचाना भी रहा है, क्योंकि बीते कई सालों से इबोला और एचआईवी / एड्स जैसी बीमारियों से अफ्रीका परेशान रहा है. इन बिमारियों से मुकाबले के लिए अफ्रीका को दिए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों में भारत की सक्रिय भागीदारी रही है, जिसको और बढ़ाने की बात दुहराई गयी है. अब देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस सम्मेलन में व्यक्त किये गए संकल्प को कितनी दक्षता से ज़मीन पर उतारा जाता है और दोनों पक्ष किस प्रकार निश्चित समय में पारस्परिक हितों को पूरा करते हैं. यह संयोग ही है कि जिस समय यह सम्मलेन हो रहा है, ठीक उसी समय व्यापार में सहूलियत के मामले में भारत 12 स्थानों की लगाई छलांग लगाकर 130 वें स्थान पर पहुंचा है. ज़ाहिर तौर पर भारत एक आर्थिक महाशक्ति बनने की दिशा में मजबूत कदम बढ़ा चूका है और ऐसे में, अगर भारत अफ़्रीकी देशों के साथ अपना व्यापार बढ़ाने की संभावनाओं को अंजाम तक पहुंचाता है तो निश्चित रूप से वह चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने में सक्षम हो जायेगा, जिसकी नजर पहले से ही अफ़्रीकी देशों पर गड़ी हुई है.

– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

India Africa summit 2015, depth analytical hindi article by mithilesh, foreign policy, business and unsc extension,

भारत, अफ्रीकी देश, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, India, Africa, UNSC,दिल्ली, भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन, सुरक्षा कड़ी, 2000 सीसीटीवी कैमरे, हेलीकॉप्टरों से निगरानी, 54 अफ्रीकी देशों के राष्ट्राध्यक्ष, Delhi, India-Africa summit, High security, CCTV cameras, helicopter, दिल्‍ली पुलिस, India Africa Forum Summit, Delhi Police,hindi lekh, hindi article, सुषमा स्वराज, विकास स्वरूप, आतंकवाद, Indo-Africa Summit, African countries, Sushma Swaraj, Terrorism,Officers Talk, Political Co-operation, अरुण शौरी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, नरेंद्र मोदी सरकार, पीएमओ, Arun Shourie, Prime Minister Narendra Modi, PMO

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh