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अमेरिका पाक सम्बन्ध एवं परमाणु अप्रसार

Mithilesh's Pen
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पिछले दिनों एक वैश्विक रिपोर्ट में जब दावा किया गया कि पाकिस्तान अपने यहाँ तेजी से परमाणु हथियारों का ज़खीरा बढ़ा रहा है, ठीक तभी से पाकिस्तान की परमाणु शक्ति संपन्न देश होने की जिम्मेदारी पर भी गंभीर चर्चाएं हो रही हैं. अपनी परमाणु तकनीक की तस्करी के लिए कुख्यात पाकिस्तान की बिडम्बना देखिये कि जबसे भारत में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है, तबसे पाक के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से लेकर, सैन्य प्रमुख और प्रधानमंत्री शरीफ तक अपने देश के परमाणु शक्ति संपन्न होने की बात ज़ोर ज़ोर से बता रहे हैं. छोटे मोटे सेनाधिकारियों और हाफ़िज़ सईद जैसे आतंकियों की तो बात ही छोड़ दीजिये! पाकिस्तान के परमाणु शक्ति के बारे में दावा करने वाली रिपोर्ट में भारत से उसकी तुलना करते हुए स्पष्ट किया गया था कि भारत और पाकिस्तान की परमाणु जिम्मेदारी में ज़मीन आसमान का फर्क है. भारत जहाँ इस ताकत का इस्तेमाल पहले न करने पर प्रतिबद्ध है, वहीं पाकिस्तान के बारे में इस तरह की कोई प्रतिबद्धता नहीं है. अमेरिका सहित तमाम देश इस बात को बखूबी समझते हैं. बड़े ज़ोर शोर से एक बार फिर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री अमेरिकी दरवाजे पर जा रहे हैं. इस बीच यह अफवाह भी तेजी से उड़ी है कि पाकिस्तान अमेरिका से वैसा ही समझौता करने वाला है, जैसा अमेरिका ने भारत के साथ किया है.

जा सकता है कि भारत को एक जिम्मेवार परमाणु संपन्न देश में गिना जाने लगा. पाकिस्तान की बेचैनी की असल वजह यही है, क्योंकि एक तरफ तो वह संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर दुसरे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दे समेत भारत विरोधी दुसरे मुद्देों को उठाने की कोशिश कर रहा है तो दूसरी ओर उसकी हालत ऐसी है कि बड़ी ताकतें उसे जिम्मेदार राष्ट्र मानने से ही इंकार करती रही हैं. इसलिए इस मुद्दे पर नवाज शरीफ टोकन रूप में ही सही, अमेरिका से अपने लिए इज्जत की मांग कर रहे हैं. परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) के 48 सदस्य देशों की नज़रों में अच्छा बच्चा बनने की पाकिस्तान को इसीलिए जल्दबाजी मची है. समझना दिलचस्प होगा कि चीन से बड़े समझौते और भागीदारी के बावजूद चीन वैश्विक बिरादरी में पाकिस्तान को वह इज्जत नहीं दिला सकता है जो उसे पश्चिमी राष्ट्रों से मिल सकती है. क्योंकि, चीन और पश्चिम देशों के सम्बन्ध खुद ही अस्थिर रहे हैं.

आयोजित एक बैठक में शरीफ की मेजबानी करेंगे और यह दूसरी बार है, जब ये दोनों नेता व्हाइट हाउस में मुलाकात करेंगे. ख़बरों के अनुसार द्विपक्षीय मुद्दों में आर्थिक वृद्धि, व्यापार और निवेश, स्वच्छ ऊर्जा, वैश्विक स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन, परमाणु सुरक्षा, आतंकवाद से निपटना और क्षेत्रीय स्थिरता जैसी बातों के होने की सम्भावना है. लेकिन, इन सबसे बढ़कर पाकिस्तान जिस बात के लिए सर्वाधिक लालायित है, वह निश्चित रूप से अमेरिका के साथ भारत के समकक्ष परमाणु समझौता है. इस कड़ी में अमेरिकी अधिकारी पाकिस्तानी रिकॉर्ड से भली भांति परिचित होंगे, जिसे थोड़ी भी जानकारी रखने वाला व्यक्ति समझता है, चाहे वह विश्व के किसी भी कोने से क्यों न हो! दूसरी बातों के पुरानी पड़ने के कारण छोड़ दिया जाय तो पाकिस्तान का शीर्ष नागरिक और सैन्य नेतृत्व 2011 में अमेरिकी नेवी सील के अभियान में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के काफी पहले से ही उसकी देश में मौजूदगी के बारे में जानता था,  यह दावा पाकिस्तान के तत्कालीन रक्षा मंत्री ने हाल ही में किया है. चौधरी अहमद मुख्तार 2008 से 2012 के बीच पाकिस्तान के रक्षा मंत्री थे.

पाकिस्तान को परमाणु समझौते का लालच अगर अमेरिका देता है तो इससे उसकी साख पर भी गंभीर सवाल उठना तय है. अफगानिस्तान के रक्षामंत्री मोहम्मद मासूम स्तानकेजई ने भी कहा है कि पाकिस्तान में तालिबान के लीडरशिप की जड़े होने पर कोई संदेह नहीं है! पाकिस्तान के आतंरिक हालात, वहां का तथाकथित लोकतंत्र, भारत में उसकी आतंक फैलाने की भूमिका, अफगानिस्तान में आतंकी तालिबान को समर्थन देने की उसकी भूमिका, हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ उसका लचर रवैया और उसकी सेना का नागरिक प्रशासन पर हावी रहना उसकी साख के बारे में काफी कुछ आप ही कह देते है. ऊपर से चीन के साथ उसकी संदिग्ध नजदीकी अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में कोई सकारात्मक परिवर्तन ला पायेगी, इस बात पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है. अमेरिका को यह समझना होगा कि उसकी वैश्विक साख चीन जैसे देशों से काफी अलग है, इसलिए उसे परमाणु अप्रसार का विशेष ध्यान रखना होगा और पाकिस्तान से उसका किसी भी प्रकार का परमाणु समझौता परमाणु अप्रसार का खुला उल्लंघन होगा, इस बात में किसी को रत्ती भर भी शक नहीं!

– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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Hindi article by Mithilesh on USA and Pakistan relations, atomic power distribution

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