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भारत जर्मनी को है एक दुसरे की जरूरत

Mithilesh's Pen
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जर्मनी की बड़ी कंपनी फॉक्सवैगन के प्रदूषण धोखाधड़ी सॉफ्टवेयर मामले में फंसने से निश्चित रूप से जर्मनी की औद्योगिक साख को चोट पहुंची है. ऐसे ही समय जर्मन की राष्ट्र प्रमुख, जो दुनिया की ताकतववार महिलाओं में शुमार होती रही हैं, उनका भारत यात्रा पर आना, वह भी चार दिनों के लिए अपने आप में महत्वपूर्ण संकेत है. यूएन में जी-4 देशों की मीटिंग में जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल से मिलने के तुरंत बाद इस ताकतवर यूरोपीय देश की राष्ट्रप्रमुख का भारत दौरे पर होना दोनों देशों के लिए सुखद संकेत है. हालाँकि, इस दौरान देश में दुसरे मुद्दे के हाईलाइट होने से इस यात्रा को उतनी प्रमुखता नहीं मिल पायी, लेकिन इस यात्रा ने दोनों देशों के संबंधों में एक नया अध्याय जोड़ने की भरपूर कोशिश की है. रक्षा उत्पादन, आधुनिक प्रौद्योगिकी में व्यापार, खुफिया जानकारी और आतंकवाद तथा उग्रवाद का मुकाबला करने के क्षेत्रों में साझेदारी से दोनों देशों ने तेजी से अपने संबंधों को परवान चढाने की कोशिश की है. पिछले दिनों केंद्रीय विद्यालयों से जर्मन भाषा को हटाने को लेकर जो बहुचर्चित विवाद हुआ था, वह विवाद भी इस यात्रा में दोनों देशों ने सुलझा लिया है और अब भारतीय केंद्रीय विद्यालयों में अतिरिक्त विदेशी भाषा के तौर पर जर्मन भाषा पढ़ाई जाएगी. यात्रा के आखिरी पड़ाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंगलुरु में जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल की मौज़ूदगी में भारत-जर्मनी के उद्योगपतियों को संबोधित करते हुए कहा कि ऐसे समय जब दुनिया आर्थिक मंदी का सामना कर रही है भारत निवेशकों के लिए पसंदीदा स्थान बना हुआ है. भारत के इस दावे का समर्थन मूडीज जैसे स्वतंत्र संस्थानों के साथ-साथ विश्व बैंक ने भी किया है. ऐसे में भारत-जर्मनी में आर्थिक सहयोग की अपार संभावनाएं दिखती हैं, जिन्हें दोनों देशों को भुनाना ही चाहिए. पहले से ही भारत के लिए जर्मनी एक अहम व्यवसायिक पार्टनर रहा है और 2014 में दोनों देशों के बीच करीब 1700 करोड़ डॉलर से ज्यादा का व्यवसाय हुआ है जिसमें केमिकल, मशीन टूल, इलेक्ट्रिकल सामान और टेक्सटाइल शामिल है. प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर ज़ोर देकर कहा कि उनकी सरकार व्यापार और उद्योगों के अनुकूल माहौल बनाने के लिए प्रतिबद्ध है और बुनियादी संरचना विकास से जुड़ी परियोजनाओं को तेज़ी से मंज़ूरी दे रही है. बताना उचित रहेगा कि इसी क्रम में केंद्र सरकार ने निवेशकों की पुरानी चिंताओं को दूर करने के लिए महत्तवपूर्ण क़दम भी उठाए हैं, जिनमें कई परियोजना सुरक्षा और पर्यावरण मंज़ूरी के कारण रुकी हुई थीं, उन्हें भी तेजी से मंजूरी दी जा रही है. प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर जीएसटी बिल का ठीक ही ज़िक्र किया और ज़ोर देकर उम्मीद जताई कि यह 2016 में पास हो जायेगा. जर्मनी के उद्योगपतियों को भारत में निवेश के लिए आमंत्रित करते हुए पीएम ने कहा कि दुनिया के किसी और भी देश में आविष्कार और उत्पादन की इतनी क्षमता नहीं होगी, जितनी भारत में है.

संयोगवश जर्मनी अपने एकीकरण की 25वीं वर्षगांठ मना रहा है और ऐसे समय जर्मनी के साथ भारत अपने संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में लगा हुआ है तो इसके कई कारण दिखते हैं. जर्मनी की खूबियों और भारत की प्राथमिकताओं में एकरूपता नज़र आती है और, उसी प्रकार दोनों देशों की परस्‍पर साख़ में भी काफी हद तक साम्यता दृष्टिगोचर होती है. अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार और स्थाई सीट के लिए दोनों देशों की दावेदारी को ही ले लीजिये, जहाँ दोनों को एक दुसरे की साफ़ जरूरत नज़र आती है. भारतीय प्रधानमंत्री और जर्मन चांसलर द्वारा संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में ठीक ही कहा गया कि ‘भारत के विकास कार्यक्रम के प्रति‍ जर्मनी की प्रतिक्रिया काफ़ी उत्‍साहजनक है. भारत और जर्मनी निवेश, व्‍यापार और निर्माण, मूलभूत सुविधाओं तथा कौशल विकास में प्रौद्योगिकी सहभागिता बढ़ाने की दिशा में पूरे आत्‍मविश्‍वास से आगे बढ़ सकते हैं, तो जर्मन अभियांत्रिकी तथा भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कौशल अगली पीढ़ी के उद्योग का सृजन कर सकते हैं, जो कि अधिक सक्षम, किफ़ायती तथा पर्यावरण अनुकूल होगा.’ ज़ाहिर है कि भारतीय आईटी विशेषज्ञों की जरूरत अन्य देशों की तरह जर्मनी को भी है. भारत में मौज़ूद 1600 के आस पास जर्मन कम्‍पनियां, जिनकी संख्‍या निरन्‍तर बढ़ रही है, यह बात सिद्ध करती हैं कि दोनों देशों के हित किस प्रकार महत्वपूर्ण और निरंतरता समेटे हुए हैं. इस यात्रा में भारत सरकार के महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स स्‍मार्ट सिटीज़, स्‍वच्‍छ गंगा तथा अपशिष्‍ट प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में जर्मन सहयोग मिलने की बात कही जा रही है, जो कि भारतीय खेमे के लिए उत्साहजनक बात है. दोनों देशों के अन्य सहयोगों की बात करें तो, स्‍वच्‍छ ऊर्जा तथा जलवायु परिवर्तन रोकने, भारत के हरित ऊर्जा गलियारे के लिये जर्मनी द्वारा दी गई एक अरब यूरो से भी अधिक की सहायता और भारत में सौर परियोजनाओं को दिये गये एक अरब यूरो से अधिक के एक अन्‍य सहायता पैकेज को काफ़ी महत्‍वपूर्ण बताया जा रहा है. भारत की झोली में आयी अन्य उपलब्धियों की बात की जाय तो, अन्‍तर्राष्‍ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्‍यवस्‍था में भारत की सदस्‍यता को जर्मनी द्वारा दिये गये ठोस समर्थन का ज़िक्र महत्वपूर्ण है. इस यात्रा में भारतीय प्रधानमंत्री को जर्मन चांसलर द्वारा जम्‍मू-कश्‍मीर में 10वीं शताब्‍दी में मां दुर्गा के महिसासुरमर्दिनी अवतार में बनी एक प्रतिमा को लौटाना भारत के महत्त्व को जर्मनी की नज़र में दर्शाता है. ज़ाहिर है, जिस प्रकार की वैश्विक हलचलें हो रही हैं, चाहे वह आर्थिक हों, राजनीतिक हों या किसी और प्रकार की हों, हर एक को एक दुसरे की सख्त जरूरत महसूस हो रही है और इस मायने में निश्चित रूप से यह यात्रा आने वाले दिनों में मील का पत्थर साबित हो सकती है. इस क्रम में वैश्विक राजनीति में ‘आईएस’ को लेकर चल रहे संघर्ष पर इन दो देशों के बीच कुछ सहमति बनी है कि नहीं, यह बात अभी बाहर आनी बाकी है. सीरिया में चल रहे संघर्ष में भारत और जर्मनी के हित गहरे जुड़े हुए हैं. जर्मनी ने लाखों सीरियाई शरणार्थियों को अपने देश में पनाह दी है तो भारत के व्यापारिक हित इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं. रूस द्वारा सीरिया पर किये जा रहे हमले और अमेरिका समेत नाटो देशों का विरोध भी निश्चित रूप से जर्मनी और भारत के बीच चर्चा का एक महत्वपूर्ण विषय रहा है. हालाँकि, भारत अभी तक इस मुद्दे पर कुछ कहने से बचता ही रहा है. इससे आगे बढ़कर देखते हैं तो जर्मनी मीडिया अब तक भारत को लेकर बहुत उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं दिखाता रहा है, जबकि चीन के प्रति यह बेहद उदार रहा है. जर्मनी के व्यापार आंकड़ों की बात करें तो वह आज भी भारत के पक्ष में झुकना बाकी है. देखना महत्वपूर्ण है कि जर्मन चांसलर की इस यात्रा में चीन से ज्यादा नहीं तो कम से कम चीन के बराबर भारत को वरीयता मिलती है या नहीं. हालाँकि, समझौतों की जो लिस्ट सामने आ रही है, वह निश्चित रूप से उत्साहजनक है और आने वाले भविष्य में दोनों देशों की पारस्परिक सहयोग और उत्साह को बढ़ाने वाले ही हैं. हालांकि मर्केल के विदेश मंत्री फ्रैंक वॉल्टर स्टाइमर ने ‘भारत में कर मतभेद, भ्रष्टाचार, मूलभूत ढांचों में रुकावट और लाल फीताशाही के असर’ को लेकर चिंता जताई है. ऐसी ही चिंता भारत के वित्त मंत्री ने भी अपने भाषण में जताई है. अरुण जेटली न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय में भारतीय अर्थव्यवस्था पर भाषण देने आए हुए थे और यहाँ उन्होंने स्पष्ट कहा कि दादरी जैसे हादसे भारत में नीति की दिशा भी बदल सकते हैं. इसलिए यह हर नागरिक की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने अमल या बयान में ऐसे अफ़सोसजनक और निंदनीय हादसों से दूर रहे. जाहिर है, देश के विकास के लिए सिर्फ सरकार ही कैसे जिम्मेदार कही जा सकती है. जिम्मेदारी तो नागरिकों की भी उतनी ही है. वैसे भी, जर्मनी समेत पश्चिमी देश भारत के प्रति पहले भी थोड़े चिंतित रहे हैं और अब वक्त आ गया है कि भारत के आर्थिक महाशक्ति बनने की राह में आ रही छिटपुट चिंताओं से सरकार कड़ाई से निपटे!

– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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