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इन मौतों के अतिरिक्त, 1975 में आग लगने से 200 यात्री, 1997 में 350 लोग मारे गए हैं तो विमान दुर्घटनाओं की भी एक लम्बी सीरीज है इस सन्दर्भ में. 1973 में जॉर्डन के बोइंग 707 के दुर्घटनाग्रस्त होने से 176 हाजियों की मौत हुई तो, 1974 में एक अन्य दुर्घटना में 191 लोग मारे गए. 1978 और 1979 में भी बड़ी विमान दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 170 और 156 लोग मारे गए. 1991 में नाइजीरिया एयरवेज के विमान की दुर्घटना में तकरीबन 247 हाजी बेमौत मारे गए. गौर करने वाली बात यह भी है कि 24 सितम्बर 2015 की भगदड़ से पहले गत 13 सितम्बर को क्रेन गिरने से करीब 107 लोगों की मौत हो गई थी और करीब 200 सौ लोग जख्मी हो गए थे और उसके मात्र 11 दिनों बाद इतना बड़ा हादसा सऊदी प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़ा करता है. भारत के लिए राहत की बात इतनी ही कही जा सकती है कि इस गंभीर हादसे में किसी भारतीय नागरिक के हताहत होने की खबरें नहीं आयी हैं, अलबत्ता विदेश मंत्रालय ने अपना बयान जारी कर उम्मीद जताई है कि हादसे में दो भारतीय घायल हो गए हैं. लेकिन, प्रश्न यहाँ सिर्फ भारतीय लोगों का ही नहीं है, बल्कि एक-एक वैश्विक नागरिक का जीवन अनमोल है और प्रशासन को हर हाल में इन दुर्घटनाओं पर रोक लगाने का प्रयत्न करना चाहिए, क्योंकि अगर इन पर रोक नहीं लगी तो हज-यात्रा के नाम से श्रद्धालुओं में खौफ का संचार हो जायेगा और साथ में बड़ा सवालिया निशान लगेगा सऊदी प्रशासन पर, जो कि निश्चित रूप से ऐसा नहीं चाहेगा. संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्थाओं को भी इन मौतों पर सक्रियता बरतनी चाहिए, तभी इन श्रद्धालुओं का जीवन सुरक्षा के दायरे में होगा और प्रत्येक वर्ष होने वाली हज-यात्रा, कुछ हद तक ही सही, सुरक्षा की दिशा में कदम दर कदम आगे बढ़ती हुई नजर आएगी.
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