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अभिशाप है रिफ्यूजी समस्या

Mithilesh's Pen
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सुपुत्र और कपूर खानदान की छूटी सुपुत्री लांच होने वाले थे. खैर, यह फिल्म तमाम हाइप के बावजूद आयी और चली भी गयी, लेकिन इसका एक गाना आज भी ज़ुबान गुनगुनाने लगती है. अनु मलिक को इस ‘पंछी, नदियां, पवन के झोंके, कोई सरहद ना इन्हें रोके’ के लिए राष्ट्रीय अवार्ड भी मिला था. यदि इस गाने को ही पकड़कर आगे बढ़ते हैं तो सीरिया के शरणार्थी वाकई पंछियों और मछलियों की तरह बेघर होकर कभी समुद्र में तो कभी जिहादियों के हाथों अपनी जान गँवा रहे हैं. सीरिया के शरणार्थी संकट से इस वक्त पूरा यूरोप हलकान है. जर्मनी जैसे देशों ने इस मामले में सकारात्मक रूख जरूर अपनाया है मगर इस देश की चिंता अब छलकने लगी है. जर्मन चांसलर एंगेला मैर्केल ने कहा कि जर्मनी में बड़ी संख्या में आ रहे शरणार्थियों से आने वाले सालों में उनका देश बदल जाएगा और जर्मनी सिर्फ़ अपने बल बूते इस संकट को हल नहीं कर सकता है, इसलिए अन्य यूरोपियन देशों को भी अपने यहाँ शरण देने की प्रक्रिया तेज करनी चाहिए.Refugee issues are curse on humanity, hindi article, syria war

चांसलर का यह बयान कोई मामूली बयान नहीं है और यह जर्मनीवासियों की छटपटाहट को बयान करता है. वैसे, उन्होंने यह भी कहा कि जर्मनी शरण देने की प्रक्रिया को तेज़ करेगा और छह अरब यूरो की लागत से अतिरिक्त घर बनाए जाएंगे. इस कड़ी में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने भी शरणार्थियों को अपने यहाँ रखने पर सहमति जताई तो फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसुआ ओलां के अनुसार वहां की सरकार भी 24 हज़ार शरणार्थियों को शरण देने के लिए तैयार है. इस सन्दर्भ में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में कुल एक लाख 25 हज़ार शरणार्थियों को रखे जाने पर सहमति बनी है. सवाल यह है कि क्या कुछ हज़ार या लाख शरणार्थियों को अपने यहाँ रख लेने भर से यह समस्या हल हो जाएगी या फिर इस समस्या के निस्तारण पर वैश्विक समुदाय को दुसरे तरीके से सोचना होगा. इस बारे में यह भी बताया जाना जरूरी है कि सीरियाई बच्चे आयलान कुर्दी की समुद्र तट पर मिली लाश से दुनिया भर में हलचल जरूर मची है, लेकिन इसके बावजूद खाड़ी देश शरणार्थियों को लेकर सकारात्मक नजर नहीं आ रहे हैं. कहा तो यह भी जा रहा है कि सीरियाई जिहादियों को समर्थन के पीछे खाड़ी देशों की राजनीति ही जिम्मेवार है. खैर, इस बात में कोई शक नहीं है कि यह समस्या दिन पर दिन अजगर की भांति मुंह फैलाये जा रही है.

होगा. पूर्व में जब पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के बीच ऐसे ही गृह युद्ध के हालात उत्पन्न हुए थे तब भारत के पूर्वी छोर पर बांग्लादेशी नागरिक शरणार्थियों के रूप में घुसने लगे. अंततः भारत को सैनिक कार्रवाई के लिए मजबूर होना पड़ा और तत्पश्चात बांग्लादेश का जन्म हुआ. वर्तमान में भी पाकिस्तानी हिन्दुओं पर किस प्रकार का जुल्म हो रहा है, यह वैश्विक समुदाय से छुपा नहीं है और यह भी तथ्य है कि पाकिस्तानी हिन्दू पलायन करके भारत ही आते हैं. समस्या यह है कि इन परिस्थितियों पर वैश्विक समुदाय इतना नरम और उलझाऊ रूख क्यों प्रदर्शित करता है. आपको शायद ही यह सुनने को मिले कि पाकिस्तानी हिन्दुओं पर अत्याचार के मामलों में किसी वैश्विक समुदाय ने कड़ाई से अपना नजरिया पेश किया हो, जबकि वहां हिन्दुओं के प्रतिशत में लगातार गिरावट दर्ज की गयी है, साथ ही साथ मंदिरों को पाकिस्तान से लगभग साफ़ ही कर दिया गया है. एक आम व्यक्ति के मन में इससेRefugee issues are curse on humanity, hindi article, pakistan hindus and human rights सम्बंधित बड़ा आसान सा प्रश्न उठता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ, ब्रिक्स, यूरोपियन यूनियन, जी-20 और ऐसी ही अनेक संस्थाएं क्या अंचार डालने के लिए हैं या फिर व्यापार- व्यापार और डॉलर- डॉलर खेल कर संतुष्ट हो जाने भर के लिए हैं. अमेरिका का जब जी में आता है, पाकिस्तान में घुस जाता है और लादेन को शिकार बना लेता है, कभी अफगानिस्तान तो कभी इराक पर टूट पड़ता है. इसी तरह चीन दक्षिणी चीन सागर और हिन्द महासागर में अपनी गतिविधियाँ अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को कुचलते हुए आगे बढ़ा रहा है. रूस भी तमाम विरोधों के बावजूद अपने मन की करता ही रहता है. ऐसे में एक सीरिया संकट पर सैन्य हस्तक्षेप में कहाँ समस्याएं आ रही हैं? जब तक वैश्विक राजनीति की इन समस्याओं को नहीं सुलझाया जाता है तब तक यकीन मानिये शरणार्थी चाहे पाकिस्तानी हिन्दू हों या सीरियाई मुसलमान, उनके मानवाधिकार कुचले ही जाते रहेंगे और वैश्विक समुदाय दूर खड़े दर्शक की भाँती तालियां पीटता ही रहेगा. जहाँ तक बात सीरिया संकट की है तो यह साफ़ दिख रहा है कि खाड़ी देशों को खुश करने के प्रयास में

अमेरिका और यूरोपियन यूनियन इस मामले में खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं और ऐसे में सीरियाई नागरिकों की समस्याओं का हाल फिलहाल अंत नहीं दिख रहा है. अल्लाह के नाम पर मानवता पर कहर ढाने वाले इस अभिशाप को कितना लम्बा खींचेंगे, इसका अंदाजा किसी को भी नहीं है और आयलान कुर्दी जैसे मासूम बेमौत मरने का अभिशाप झेलते जा रहे हैं. विश्व समुदाय इन जीते जागते मनुष्यों के नदियों और रेगिस्तानी पवन में बह जाने का इन्तेजार कर रहा है, शायद तभी इनके दुखों का अंत भी होगा.

– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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