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जन्माष्टमी और शिक्षक दिवस का संयोग

Mithilesh's Pen
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2015 का शिक्षक दिवस और जन्माष्टमी एक साथ पड़ने का अद्भुत संयोग है. न .. न … मैं कोई ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से गणना नहीं बता रहा हूँ, बल्कि भारत के सर्वकालिक शिक्षक श्रीकृष्ण की बात कर रहा हूँ. युग आएंगे, युग जायेंगे मगर श्रीकृष्ण की ‘श्रीमद्भागवत गीता’ के रूप में दी गयी शिक्षा समयातीत बनी रहेगी. आप श्रीकृष्ण के मुख से निकली किसी भी बात को ले लीजिये, और यदि आपका मन मस्तिष्क सकारात्मक है तो उसका अर्थ आधुनिक परिप्रेक्ष्य भी स्पष्ट निकल आएगा. गीता में वर्णित निष्काम कर्म को ही शिक्षण पर लागू कीजिये, तो वर्तमान में अधिकांश समस्याओं का हल आपको नजर आ जायेगा. श्रीकृष्ण कीJanmashtami and Teachers day in India, hindi article, Lord krishna शिक्षाओं से ही इस युगपुरुष को भगवान माना जाता है. प्राचीन काल से आज तक और शायद हमेशा ही मानव जीवन में शिक्षा का महत्त्व सर्वाधिक रहा है और रहेगा भी. विद्वान यह भी कहते हैं कि मनुष्य और पशुओं में ‘शिक्षा’ का ही अंतर है. इसके साथ हम सबको यह भी ज्ञात है कि भारतीय परिवेश में शिक्षा देने वाला शिक्षक हमारे जीवन में ताउम्र आदरणीय बना रहता है और हम चाहे जिस पद और जगह पर पहुँच जाएँ अपने शिक्षकों को देखते ही, स्वतः उनके चरणों में प्रणाम करते हैं. इसी की याद में पांच सितम्‍बर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है. इस दिन देश के सभी स्‍कूल, कॉलेज, विश्‍वविद्यालय व संस्‍थानों में ढेर सारे कार्यक्रम होते हैं, छात्र अपने शिक्षकों को उपहार भेंट करते हैं तो पूर्व छात्रों को भी पांच सितम्‍बर को अपने सबसे प्रिय शिक्षक की याद जरूर आ जाती होगी, किसी डांट के रूप में, किसी सीख के रूप में, किसी अवसर के रूप में. मुझे ही ले लीजिये, तीसरी कक्षा के मेरे शिक्षक का नाम मुझे आज याद नहीं है मगर यह याद है कि वह कहा करते थे कि मैं गणित में बहुत ‘तेज’ हूँ. तब मैं अपनी बुआ के यहाँ पढता था. इसके बाद सातवीं तक के प्रिंसिपल, जिन्होंने मेरी बदतमीजी के लिए ‘धुनाई’ की थी, वह भी याद हैं. इसके बाद आठवीं में जब मैं हॉस्टल में था तब शुक्ला सर की मोटी बेंत याद है तो उनके वह समझाए हुए शब्द भी याद हैं कि ‘मिथिलेश! तुम पढ़ाई करो और अपने बूढ़े बड़े पापा के त्याग को देखा करो कि कैसे वह अपने सर पर बॉक्स लेकर तुम्हें पहुँचाने आते हैं.’ इसके बाद इंजीनियरिंग के थर्ड सेमेस्टर में निराला सर की मित्रता के सम्बन्ध में कही गयी बात आज भी प्रेरणा देती है. उनकी अंग्रेजी बेहद साफ़ थी और उन्होंने कहा था कि ‘मिथिलेश, योर फ्रेंड सर्कल वील चेंज्ड विद ओर वर्क सर्कल, सो फोकस ऑन वर्क’ … … कितनी सटीक टिप्पणी है.

छात्र जीवन में मित्रता की आड़ लेकर समय बर्बादी, अनुशासनहीनता, भटकाव इत्यादि कई Janmashtami and Teachers day in India, hindi article, dr. sarvpalli radhakrishnanसमस्याएं उत्पन्न होती हैं और ऐसे में निराला सर की टिप्पणी बेहद सटीक प्रतीत होती है. सभी विद्यार्थियों की भांति ऐसी ही अनेक यादें हैं, जिसके लिए एक किताब भी कम पड़े. इसी कड़ी में स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति, दूसरे राष्ट्रपति और उससे आगे बढ़कर एक शिक्षक के रूप में ख्यातिलब्ध डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म इसी तारीख, यानी 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के एक पवित्र तीर्थ स्थल तिरुतनी ग्राम में हुआ था. डॉक्टर राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के ज्ञानी, एक महान शिक्षाविद, महान दार्शनिक, महान वक्ता होने के साथ ही विज्ञानी विचारक भी थे. डॉ. राधाकृष्णन ने अपने जीवन के 40 वर्ष एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किए थे और एक आदर्श शिक्षक के रूप में खुद को स्थापित किया था, जिसकी याद में शिक्षक दिवस की शुरुआत भारत में हुई. वैसे विश्व के अनेक देश अलग अलग तिथियों पर शिक्षक दिवस मनाते हैं. सच तो यह है कि भारतीयता और शिक्षक एक दुसरे के हमेशा से पूरक रहे हैं. एकलव्य, अर्जुन, गुरु द्रोण, गुरु परशुराम, गुरु संदीपन मुनि को कौन हिंदुस्तानी नहीं जानता है! यह अलग बात है कि आज के आधुनिक समय में शिक्षक सर्विस प्रोवाइडर हो गए हैं, मगर भारतीय विद्यार्थियों का भाव अपने शिक्षकों को गुरु मानने का ही रहता है. समय के बदलाव के साथ परम्पराओं में बदलाव भी आता ही है, मगर आधुनिक काल में यह कुछ ज्यादे ही तीव्र गति से आया है, वह भी नकारात्मकता लिए हुए. आज के विद्यार्थी उद्दंड, अनुशासनहीन होते जा रहे हैं तो शिक्षकों पर भी अनेक अपराधों समेत ‘यौन उत्पीड़न’ तक के घिनौने आरोप लग रहे हैं. खैर, शिक्षक दिवस पर इन समस्याओं के निराकरण के साथ जिस विषय को उठाना सबसे ज्यादे आवश्यक प्रतीत होता है वह निश्चित रूप से शिक्षक और छात्र के बीच संवादहीनता की स्थिति है. इसके पीछे तमाम कारण गिनाये जा सकते हैं मसलन परिवारों की टूटन जिससे बच्चों और बड़ों में सहनशीलता समाप्त होती जा रही है, इस कारण समाज के एक हिस्से यानी शिक्षक और छात्र भी एकाकी होते जा रहे हैं, जिससे संवादहीनता की खाई और चौड़ी होती जा रही है. इसके अतिरिक्त, हमारी आधुनिक शिक्षा व्यवस्था भी कहीं न कहीं संवादहीनता के लिए जिम्मेदार है क्योंकि बच्चों के पाठ्यक्रम उन पर और उसे पढ़ाने वाले शिक्षक के ऊपर एक बोझ की तरह हो जाता है. ऐसे में परस्परJanmashtami and Teachers day in India, hindi article, water park संवाद के लिए समय ही नहीं बचता है. इसके अतिरिक्त, स्कूलों को तमाम कॉर्पोरेट ‘सॉफ्ट टारगेट’ करने लगे हैं और शिक्षा मंदिरों को अपने प्रोडक्ट सेलिंग के लिए इस्तेमाल करने लगे हैं. इसमें पिकनिक कार्यक्रमों से लेकर, स्कूल प्रबंधन और कई बार स्टूडेंट्स से इंटरेक्शन भी शामिल होता है, जिसे किया तो एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी के नाम पर जाता है, मगर इसका लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ ‘प्रोडक्ट प्रमोशन और सेलिंग’ होता है, जिससे छात्र और शिक्षक के बीच का स्पेस और बढ़ जाता है.

राजनीतिक स्तर पर भी शिक्षा नीति को लेकर तमाम प्रश्न उठते रहे हैं, मगर इस पर कार्य कब शुरू होगा यह ईश्वर ही जानता है. हालाँकि, राजनीतिक तंत्र में आये एक बदलाव का ज़िक्र किये वगैर यह लेख अधूरा ही प्रतीत होगा. सरकारें तो पहले भी रही हैं मगर नए प्रधानमंत्री की संवाद कायम करने की शैली की तारीफ़ होनी ही चाहिए. उनकी यह छवि कई अवसरों पर दिखी है और शिक्षक दिवस से एक दिन पूर्व भी उन्होंने विद्यार्थियों से सार्थक संवाद कायम किया, जिसे हर तरह की मीडिया ने सकारात्मक और रुचिपूर्वक पेश भी किया है. जरा गौर कीजिये, टीवी इंटरनेट के माध्यमों से यह इंटरैक्टिव प्रोग्राम लाखों विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए भी प्रेरित करने वाला बना होगा. इस संवाद में प्रश्नों की रोचकता भी ज़िक्र करने लायक है. प्रधानमंत्री ने दिल्ली के मानेकशॉ ऑडिटोरियम में 9 जगहों से आए करीब 800 स्टूडेंट्स को संबोधित किया तो उनकी स्पीच का देश भर के स्कूलों में वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए टेलिकास्ट भी किया गया. प्रधानमंत्री की ड्रेसिंग सेन्स, विश्व योग दिवस की योजना, स्टूडेंट्स पर प्रेशर और अभिभावकों से तालमेल, भाषण कला, साहित्य, एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज, सफलता की रेसिपी, युवाओं की टीचिंग में रुचि, देशप्रेम, प्रतियोगी परीक्षाएं, स्वच्छ भारत अभियान, खेलों में प्रधानमंत्री की रुचि, राजनेता बनना, देश सेवा और मोटिवेशन से सम्बंधित प्रश्नों में इतनी रोचकता और इंटरेक्शन है कि आप अगर यूट्यूब पर इस प्रोग्राम की वीडियो देखें तो वगैर पूरा देखे आप उठ नहीं सकते. यह बात अलग है कि नरेंद्र मोदी और आरएसएस के बीच भी गुरु शिष्य का रिश्ता देखने के बजाय लोग राजनीति सूंघने

Janmashtami and Teachers day in India, hindi article, modi and rss real relationsकी कोशिश में लगे हैं और संघ से सरकार के संवाद को किसी और नजर से देख रहे हैं. यह तो देश का सौभाग्य है कि भारत का प्रधानमंत्री छोटे बच्चों से लेकर संघ समेत सबसे संवाद कर रहा है और फिर संघ तो उसका गुरु ही है. जरा सोचिये, इस संवाद से ही तो हल निकला है और आगे भी निकलेगा. आखिर, योगेश्वर श्रीकृष्ण ने भी तो अर्जुन से संवाद ही किया था और उनके प्रश्नों को धैर्य से सुलझाया, हस्तिनापुर में भी शांति के लिए संवाद करने ही गए थे. ऐसे में जाहिर है कि शिक्षक दिवस और जन्माष्टमी दोनों का इस बार सन्देश यही है कि हर क्षेत्र में, हर एक से संवाद कायम होना चाहिए, इसी से राह निकलेगी, इसी से उलझनें सुलझेंगी.
ॐ श्री गुरुवे नमः, जय श्री कृष्ण.
– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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