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25 साल …

Mithilesh's Pen
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कालरा साहब का ग्राफ़िक डिज़ाइन और बैनर प्रिंटिंग का बिजनेस बढ़िया चल रहा था और इसी की बदौलत वह खटारा स्कूटर से होण्डा सिटी तक आ गए थे. इसके लिए न केवल उनकी मेहनत, बल्कि उनका स्टाफ भी सालों तक लगा रहा. राम बहादुर तो उनके पास 25 साल से लगा हुआ था और ऑफिस में झाड़ू लगाने से लेकर साइट पर जाने और ग्राहकों से पैसे वसूलने तक सभी काम बड़ी लगन से किया करता, हालाँकि वह चपरासी नहीं था बल्कि एक तरह से कालरा साहब का मुंहलगा था. राम बहादुर के अलावा भी सीटू, दिलीप, उमाकांत इत्यादि भी दसियों साल से कालरा साहब के पास जमे हुए थे, तब कंपनी की पहचान बनी थी.
मगर, पिछले दिनों से धीरे धीरे कालरा साहब के बदलते व्यवहार की बातें ऑफिस में होने लगीं तो राम बहादुर ने सबको धैर्य से समझाया था, मगर व्यवहार कहीं समझाने से बदलता है भला!
एक दिन दोपहर में कुर्सी पर बैठे-बैठे राम बहादुर को झपकी लग गयी कि कालरा साहब ने लगभग चिल्लाते हुए कहा कि पंखों पर धूल जमी है, उसे साफ़ कर दे. पता नहीं जानबूझकर या नींद के कारण राम बहादुर उठा नहीं तो कालरा साहब ने अपने केबिन से आकर उसे झिंझोड़ते हुए अपनी बात दुहराई तो राम बहादुर ने भी अनमने भाव से कहा कि पंखे साफ़ करना उसका काम नहीं है, चपरासी कर देगा.
उसका इतना कहना था कि कालरा साहब का गुस्सा सांतवे आसमान पर पहुँच गया और उसे लगभग धक्का देते हुए बोले, जुबान लड़ाता है , कल से ऑफिस आने की जरूरत नहीं है तुझे!
अगले दिन राम बहादुर ऑफिस नहीं आया तो उमाकांत के फोन करने पर वह फ़फ़क उठा. बोला- पूरी जवानी तो कालरा की कंपनी को दे दी. वह तो ‘अम्बानी’ बन गया मगर मैं अब बुढ़ापे में कहाँ जाऊं?
तीसरे दिन सुबह-सुबह ही उमा समेत, सीटू, दिलीप और चपरासी कालरा से हिसाब लेने उसके केबिन में पहुँच गए तो कालरा के पैरों तले जमीन ही खिसक गयी. फिर भी बात सँभालते हुए बोला कि तुम लोगों के बारे में कंपनी ने कितना सोचा है और कम से कम मुझे अल्टीमेटम तो देते तुम लो… ..
आपने अलीमेटम दिया राम बहादुर को? यह दिलीप था.
जब 25 साल देने वाले के बारे में नहीं सोचा कंपनी ने तो हमारे बारे में क्या ख़ाक सोचेगी? सीटू ने भी अपनी भड़ास निकाली..
तुम लोग करोगे क्या? कालरा ने आखिरी दांव फेंका.
हमने ऑफिस ले लिया है काम्प्लेक्स में… और उसका उद्घाटन राम बहादुर के हाथों कराएँगे … … कल!
कालरा ने अपने टेबल पर पड़े पानी की गिलास को झट से मुंह लगा लिया और पानी का धीमा घूँट भरते-भरते ही अपनी कंपनी के लिए अनुभवी डिज़ाइनर, राम बहादुर जैसा आल राउंडर और अपने ग्राहक टूटने का आंकलन कर रहा था…
उसका अनुभव उसे बता रहा था कि ’25 साल’ को धक्का मारना उसे महंगा नहीं बहुत महंगा पड़ने वाला था!
– मिथिलेश ‘अनभिज्ञ’
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