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सुना है माँ और बेटी का रिश्ता बेहद मजबूत होता है, मगर कॉर्पोरेट जगत से आयी एक खबर ने इस रिश्ते की ऐसी तैसी कर दी है. भारत में पति को परमेश्वर का दर्ज दिया जाता है, मगर कैरियर के लिहाज से सफल एक महिला ने जिस प्रकार कपड़ों की तरह पति बदले, उसने भी इस सोच को बुरी तरह हिला दिया है. यह मौसम रक्षाबंधन के पावन त्यौहार का है, जो भाई-बहनों का पवित्र त्यौहार माना जाता है और जिसकी कहानियों से इतिहास की किताबें भरी पड़ी हैं, मगर धनाढ्य और अति-शिक्षित वर्ग के एक हत्याकांड ने इन संबंधों की परिभाषा ही बदल दी है, कम से कम समाज के उच्च वर्ग में तो निश्चित रूप से!
सामने आ रहे हैं और आते रहेंगे, ठीक महेश भट्ट की नयी स्क्रिप्ट की तरह. जी हाँ! महेश भट्ट ने शीना हत्याकांड पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि उन्होंने जो नयी स्क्रिप्ट लिखी है, यह हत्याकांड उसी से मिलता जुलता है, लेकिन लिख उन्होंने पहले ही लिया है. महेश भट्ट की बोल्ड्नेस भला किसे पता नहीं है, सेक्स क्राइम इत्यादि पर उनके खुले विचार दक्षिणपंथियों को कभी पसंद नहीं आये. लेकिन, इस हत्याकांड के बारे में उन्होंने कहा है कि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा है कि हमारे समाज में यह हुआ है. देखा जाय तो, यह मामला इतना अविश्वसनीय भी नहीं है. इस मामले के सम्बन्ध में एक प्रश्न बेहद शिद्दत से उठता है कि अगर इस पूरे प्रकरण में ‘शीना’ की हत्या नहीं होती तो क्या तब भी हमारे समाज, व्यक्तियों, संस्थाओं की ऐसी ही प्रतिक्रिया होती जैसी अब हो रही है. वस्तुतः इस मामले में मुख्यतः तीन परतें हैं और जब तक तीनों परतों को अलग-अलग नहीं समझा जायेगा, इस विषय पर प्रतिक्रिया अधूरी ही रहेगी. सबसे पहला बिंदु सामाजिक प्रतिबद्धता का है, जिसकी बात किरण बेदी ने अपने ट्वीट में कही है. एक के बाद एक तीन व्यक्तियों से शादी और हर रिश्ते में छल यह साफ़ जाहिर करता है कि धनाढ्य व्यक्ति समाज की किसी भी वर्जना को अपने निहित स्वार्थ के लिए तोड़ने को तत्पर हैं. दूसरी बात आती है अपनी औलादों से खुद के कुकर्मों के विपरीत आचरण की उम्मीद करना. मतलब इन्द्राणी का जो मंतव्य सामने आ रहा है, उसमें एक बात यह भी सामने आ रही है कि वह नहीं चाहती थी कि रिश्ते में भाई-बहन लगने वाले शीना और राहुल एक दुसरे से सम्बन्ध रखें. मतलब, इसमें हॉनर किलिंग की भावना से बबूल के पेड़ पर आम उगने की उम्मीद कर रही थी इन्द्राणी मुखर्जी. तीसरा एंगल संपत्ति और जिस्म के इस्तेमाल का है जो हाई कल्चर में लगभग आम हो गया है. यह चर्चा आम है कि स्टार ग्रुप के सीईओ तक पहुँच कर उसको मुट्ठी में करना कोई साधारण बात नहीं है और इसके पीछे संपत्ति और सेक्स का लम्बा खेल शामिल होगा. ऐसे तमाम प्रकरण समाज में सामने आ चुके हैं, जिनमें गोपाल कांडा और गीतिका का प्रकरण भी एक है. गीतिका हत्याकांड में कानून का नजरिया अपनी जगह है, लेकिन सामाजिक नजरिये से जो प्रश्न उठा था वह बेहद महत्वपूर्ण है. आखिर, जब गीतिका जैसी लड़की पहली बार बीएमडब्ल्यू जैसी महँगी गाड़ी में घर आयी तो क्या उसके घरवालों में अपनी बेटी की योग्यता और उसके इनाम के बीच फर्क समझ नहीं आया होगा? शीना और इन्द्राणी मुखर्जी में तो खैर, परिवार के नाम पर कुछ था ही नहीं, अगर था तो सिर्फ और सिर्फ कुंठित लालच और असंतुलित मानसिकता! जाहिर है, सामाजिक संबंधों की बलि उच्च धनाढ्य वर्गों में कब की चढ़ चुकी है और येन, केन, प्रकारेण सिर्फ और सिर्फ अपनी कुंठा और बेतहाशा भूख ही मायने रखने लगी है. इस पूरे प्रकरण के लिए कॉर्पोरेट कल्चर भी काफी हद तक जिम्मेवार माना जाना चाहिए, जो हर हाल में अपने टारगेट पाने की सीख दे रहा है अपने एम्प्लॉयीज और फ्रेशर्स को. चाहे जो रूल तोडना पड़े, चाहे जो सम्बन्ध तोडना पड़े, चाहे जो कानून तोडना पड़े … उसे तो सिर्फ टारगेट पूरा चाहिए. ऐसे में अर्थ लोलूप समाज को शीना जैसी परिस्थितियों के लिए तैयार रहना चाहिए. अब रक्षाबंधन का रक्षासूत्र किसी भी रिश्ते की रक्षा करने में असमर्थ लगने लगा, क्योंकि जिस पर उसकी रक्षा का भार है, वही उस सूत्र के सूत को सरे बाजार बिखेर रहे हैं. अपने एक पिछले लेख में मैंने प्राइवेट और पब्लिक स्कूल और उसके प्रोडक्ट्स के बारे में बिस्तर से ज़िक्र किया है कि हमारी स्कूली शिक्षा से लेकर कार्यस्थल और एकल परिवार का गैर-जिम्मेदाराना वातावरण, हर जगह असुरक्षा और लालच ही सिखाया जा रहा है, ऐसे में बबूल के पेड़ पर आम किस प्रकार उगेगा? शीना हत्याकांड प्रकरण भी इसी प्रकार के पेड़ से उगा हुआ एक फल है. इसे सिर्फ इन्द्राणी या एकाध अपराधियों की करतूत भर नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि उसकी इस हत्या में कई लोगों की सहभागिता की बात सामने आ चुकी है. अभी तो यह एक केस है, जो धन, अवैध सम्बन्ध और कुंठा से निकालकर सामने आया है, लेकिन तब क्या होगा जब हमारी शिक्षा पद्धति और वर्क-कल्चर से अनगिनत रक्तबीज सामने आ खड़े होंगे! समाज के चिंतकों के सामने यह यक्ष प्रश्न अपने विकराल रूप में सामने आता जा रहा है और हम कबूतर की भांति अपनी आँखें बंद करके सोच रहे हैं कि बिल्ली हमला नहीं करने वाली !!
Relations and greed, hindi article by mithilesh,
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