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हिंदी पट्टी में विकास की राजनीति

Mithilesh's Pen
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एक लम्बे समय तक जातिवादी राजनीति का दंश झेल रहे हिंदी पट्टी के मुख्य राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार की फ़िजा बदलती हुई दिख रही है. न केवल राज्य की राजनीति, बल्कि केंद्रीय राजनीति का शीर्ष भी बिहार के लिए दृढ इच्छाशक्ति का परिचय देने में जरा भी संकोच नहीं कर रहा है. हालाँकि, कई लोग इसे चुनावी दांव कहकर खारिज करने की कोशिश करेंगे, किन्तु वह भी जानते हैं कि टुकड़ों में कुछ करोड़ का पैकेज देकर आयी बला टालो के अंदाज से अलग हटकर काम करने का ज़ज्बा ही है, जिससे बिहार को डेढ़ लाख करोड़ का एकमुश्त पैकेज मिलने की मजबूत घोषणा हो गयी है. चाहे उनके आलोचक हों या समर्थक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क़दमों का अंदाजा लगा पाना सबके लिए लगातार मुश्किल होता जा रहा है. एक बार फिर बिहार चुनाव से पहले उन्होंने उम्मीद से कहीं बहुत ज्यादा देकर राजनीतिक विश्लेषकों को बगलें झाँकने को मजबूर कर दिया है. उनके एक प्रशंसक ने फेसबुक पर स्टेट्स लिखा- “इतनी एनर्जी कहाँ से लाते हो यारा, शाम को दुबई सुबह को अारा”. जी हाँ! प्रधानमंत्री के एनर्जी लेवल पर भी जोरदार चर्चाएं हो रही हैं. आखिर, पंद्रह अगस्त को लाल किले पर सबसे लम्बा भाषण, उसके बाद दुबई निकलना और वहां निवेश के अतिरिक्त दाऊद इब्राहिम को घेरने पर बात करना, भारतीय समुदाय को सम्बोधित करना और फिर उसके अगले ही दिन बिहार के आरा में जबरदस्त धमाका करना कोई मामूली बात नहीं है. प्रधानमंत्री अपनी सुपर एक्टिवनेस का परिचय पहले भी दे चुके हैं, जिसकी तारीफ़ उनके विरोधी भी करते रहे हैं. खैर, इस बड़े पैकेज की घोषणा पर मोदी आलोचकों को सहसा विश्वास ही नहीं हुआ और यही कारण था कि बिहारी डीएनए का मुद्दा बनाने वाले नीतीश के मुख से पहली प्रतिक्रिया यही निकल पाई कि अभी इस पैकेज का विवरण देखना बाकी है, उसके बाद टिप्पणी कर पाउँगा. राजनीति के माहिर लालू प्रसाद यादव ने मोदी के इस विशेष पैकेज के दूरगामी प्रभाव को तुरंत भांप लिया और तत्काल ट्वीट किया कि विशेष पैकेज और विशेष दर्जे में फर्क को समझा जाना चाहिए. सच कहा जाय तो नरेंद्र मोदी ने बिहार के लिए एक मेगा पैकेज की

कार्यकर्ताओं का नाखून और बाल भेजकर डीएनए जांच को कहेंगे, क्योंकि बिहारी डीएनए का मुद्दा भी इस पैकेज के साथ दफ़न हो गया है. यूं भी नीतीश कुमार अपना मोदी विरोध का हठ पहले ही छोड़ चुके हैं और इसी के तहत वह प्रधानमंत्री का स्वागत करने में कोई कोताही नहीं कर रहे हैं, क्योंकि राजनीति से परे हटकर उनके ‘मोदी विरोध’ ने उनके राजनैतिक कैरियर को नुक्सान ही पहुँचाया है, बल्कि बिहार विधानसभा के इस चुनाव में जीते हारे कोई भी, लेकिन नीतीश कुमार का नुक्सान होना तय माना जा रहा है. इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि यदि भाजपा जीती, तब लालू मुख्य विपक्षी होंगे और यदि किसी चमत्कार से महागठबंधन की जीत हुई तब भी लालू यादव नीतीश को लोहे की मूंगफलियां खिलाकर सुशासन के दांत तोड़ते ही रहेंगे. खैर, राजनीति का चरित्र पल-पल बदलता रहता है और कल का सिर्फ आंकलन ही किया जा सकता है, भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है और आज का आंकलन तो यही कह रहा है कि नरेंद्र मोदी ने नहले पर दहला जड़ दिया है और मेगा पैकेज से उसके कार्यकर्ताओं का जोश आसमान छुएगा ही. हाँ! इसका प्रभाव आम मतदाता पर कितना पड़ता है, इसे तो वक्त ही बताएगा. हालाँकि, इस बड़े पैकेज को किस मॉडल के तहत बिहार के विकास में खर्च किया जायेगा इसकी डिटेल धीरे-धीरे ही सामने आएगी. शुरुआती जानकारी के मुताबिक, किसान कल्याण पर 3094 करोड़ रुपये, शिक्षा पर 1000 करोड़ रुपये, कौशल विकास पर 1550 करोड़ रुपये, स्वास्थ्य पर 600 करोड़ रुपये, बिजली पर 16130 करोड़ रुपये, ग्रामीण सड़क और राजमार्ग पर क्रमशः 13,820 करोड़ रुपये और 54,713 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे. इसके अतिरिक्त, रेलवे पर 8,870 करोड़ रुपये, हवाई अड्डा पर 2,700 करोड़ रुपये, डिजिटल बिहार के लिए 449 करोड़ रुपये, पेट्रोलियम और गैस पर 21,476 करोड़ रुपये के साथ पर्यटन पर 600 करोड़ रुपये खर्च किये जाने की प्राथमिक जानकारी मिली है. इस डिटेल को देखकर आसानी से समझा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस पैकेज की घोषणा में जरा भी जल्दबाजी नहीं की है, बल्कि प्रत्येक क्षेत्र का अध्ययन करने के बाद उस क्षेत्र के लिए समुचित आवंटन किया है. बिजली, राजमार्ग, पेट्रोलियम गैस पर सर्वाधिक खर्च किया जायेगा, जिससे बिहार का बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर बेहद मजबूत हो सकता है. हालाँकि, इन योजनाओं को अगर ठीक तरीके से पूरी प्लानिंग के साथ नहीं लागू किया गया तो धांधली और दलाली इस मेगा पैकेज को बर्बाद करने के लिए, बंदरबांट करने के लिए काफी हैं. इसके लिए बेहद आवश्यक है कि हिंदी पट्टी, विकास की सोच के साथ पोलिंग बूथों पर जाए. यदि वह जाति नहीं छोड़ सकती तो न छोड़े, किन्तु विकास की सोच ऊपर जरूर रखे… क्योंकि फिर, ‘मौका न मिलेगा दोबारा’ !!

– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

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