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राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक है यूएई दौरा

Mithilesh's Pen
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ललित गेट पर कुछ नहीं बोला … … आदि, आदि और अचानक चर्चा मुड़ गयी और राजनीतिक विश्लेषक यह आंकलन करने लगे कि प्रधानमंत्री यूएई की मस्जिद में क्यों गए, इसके निहितार्थ क्या हैं … आदि, आदि! खैर, प्रधानमंत्री का यह दौरा किसी भी किन्तु-परन्तु से काफी आगे की अहमियत रखता है. यूं तो प्रधानमंत्री अपने प्रत्येक विदेशी दौरे से बेहतर हासिल करने की कोशिश करते हैं, लेकिन यूएई का दौरा न केवल निवेश के लिहाज से बल्कि प्रधानमंत्री की राजनैतिक छवि के लिए भी ‘सोने पर सुहागा’ साबित होने जा रहा है. इसकी विस्तार से चर्चा आगे की पंक्तियों में करेंगे, पहले उनके दौरे पर संक्षिप्त नजर डाल लेते हैं. जैसा कि हम सब जानते हैं कि प्रधानमंत्री किसी देश की विजिट से ठीक पहले वहां की भाषा में ट्वीट करके एक भावनात्मक सम्बन्ध जोड़ने की कोशिश करते हैं तो उन्होंने यूएई जाने से पहले भी अरबी भाषा में ट्वीट करके इस परंपरा को बनाये रखा. इसके बाद प्रिंस और उनके भाइयों की आगवानी में प्रधानमंत्री ने भारत में निवेश की ठोस संभावनाओं से वहां के उद्योगपतियों का आकर्षक तरीके से ध्यान खींचा. बताना लाजमी होगा कि अमेरिका और चीन के बाद भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार यूएई ही है. प्रधानमंत्री ने इसका ज़िक्र करते हुए याद भी दिलाया कि 700 विमानों की आवाजाही दोनों देशों के आपसी जुड़ाव की ओर स्वतः ही इशारा करती है. प्रधानमंत्री की इसी टिप्पणी के एक हिस्से, जिसमें उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्रियों के 34 साल तक इस देश का दौरा न करने का प्रसंग छेड़ा था, कांग्रेस ने मुद्दा बना लिया. हालाँकि, इस बात को सामान्य तरीके से ही लिया जाना चाहिए था, किन्तु झल्लाई कांग्रेस के आनंद शर्मा ने नरेंद्र मोदी की मानसिकता को ‘अस्थिर’ बताने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई. वैसे, जिस प्रकार पिछले मानसून-सत्र को कांग्रेस की बेवजह ज़िद्द के कारण बर्बाद होना पड़ा, उसने इस पुरानी पार्टी की छवि जनता के बीच और भी ख़राब कर दी है. नतीजा यही हो रहा है ‘खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे’! खैर, कांग्रेस की इस आलोचना से बहुत आगे जाकर अपना असर छोड़ने में कामयाब रहा है प्रधानमंत्री द्वारा खाड़ी देश की यह यात्रा. इस बात में कोई शक नहीं है कि खाड़ी देशों के पास अपार सम्पदा है और इस सम्पदा के कारण विज्ञान की प्रगति के प्रथम द्वार बनने की ओर अग्रसर हैं यूएई जैसे देश. प्रधानमंत्री ने इस तरफ इशारा करते हुए विजिटर्स बुक में ‘साइंस ऑफ़ लाइफ दर्ज किया और भारत में टाउनशिप की मजबूत संभावनाओं की ओर वहां के उद्योगपतियों का ध्यान खींचते हुए यह बताना नहीं भूले कि भारत सिर्फ एक बाजार ही नहीं है, बल्कि बेहद मजबूत देश है जहाँ निवेश की अपार सम्भावना है. प्रधानमंत्री की इस बात में उन व्यक्तियों और देशों के लिए चेतावनी की गंध महसूस की जा सकती है कि जो कोई भी भारत को मात्र बाजार समझने की भूल करेगा, भारत उसे कतई इंटरटेन नहीं करेगा. इसी कड़ी में प्रधानमंत्री इस बात को बखूबी Narendra modi in UAE, political master stroke, hindi article by mithilesh kumarजानते हैं कि यूएई में टाउनशिप और ऊँची बिल्डिंग्स बनाने के विशेषज्ञ मौजूद हैं, जिन्हें अगर सहूलियतें दी जाएँ तो भारत में करोड़ों लोगों को रहने का आसरा मिल सकता है. सच कहा जाय तो प्रधानमंत्री की यूएई की इस यात्रा से उनके द्वारा 2022 में प्रत्येक भारतीय को घर दिए जाने का वादा पूरा होने का मजबूत विश्वास और आधार एक साथ दिखता है. प्रधानमंत्री की इस यात्रा से उसकी विदेश नीति, विशेषकर ईरान को लेकर, बदलाव के संकेत भी मिल रहे हैं. इस सम्बन्ध में पिछले दिनों अमेरिकी प्रशासन द्वारा की गयी एक टिप्पणी महत्वपूर्ण है, जिसमें भारत ने अपने हितों की कीमत पर अमेरिका की ईरान नीति का समर्थन किया था, ऐसा वक्तव्य आया था. मनमोहन सिंह द्वारा अमेरिका से परमाणु करार किये जाने के बाद से ही ईरान और भारत के सम्बन्ध असहज होना शुरू हो गए थे, जबकि इस इस्लामिक देश के दूर जाने से होने वाले नुक्सान की भरपाई की चिंता अब 2015 में की गयी दिख रही है. कूटनीति में, जब आपसे एक मित्र दूर जाता है तो यह बेहद आवश्यक है कि उसी कद का या उससे बड़े कद के दुसरे संबंधों को अपनी झोली में डाला जाय. हालाँकि, विदेश नीति से सम्बंधित प्रभावों के अध्ययन में जल्दबाजी नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि आने वाले समय में ऊंट किस करवट बैठेगा, यह समझने के लिए इन्तजार ही किया जा सकता है. प्रधानमंत्री की इन उपलब्धियों के अतिरिक्त, एक मुस्लिम देश में हिन्दू मंदिर के लिए वहां की सरकार द्वारा ज़मीन उपलब्ध कराना नरेंद्र मोदी की आरएसएस और भाजपा में स्वीकार्यता को और मजबूत ही करेगा, साथ ही साथ वहां की मस्जिद में जाना उनके आलोचकों का मुंह भी जबरदस्त तरीके से बंद करेगा. उनके इस दांव पर प्रतिक्रियाएं भी आनी शुरू हो गयी हैं. आप नेता संजय सिंह ने कहा,”वाह रे मोदी जी भले ही भारत की मस्जिद में आप कभी नहीं गए लेकिन विदेश जाते ही आपको सर्वधर्मसमभाव ज्ञान प्राप्त हो गया.” कांग्रेस नेता अखिल सिंह ने मोदी के दुबई की मस्जिद दौरे का स्वागत किया है, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा, “मोदी टोपी पहनने से इनकार करते रहे हैं, लेकिन अब मस्जिद का दौरा करना स्वागत योग्य है. कम से कम सदबुद्धि तो आई.” उमर अब्दुल्लाह ने ट्वीट करके कहा कि आबू धाबी की मस्जिद सैलानियों के लिए बड़ा आकर्षण है. पीएम का यहां जाना उसी तरह की सैर है जैसा वो चीन की टेरकोट आर्मी के पुतलों को छू-छू कर देख रहे थे. खैर, राजनीतिक विरोधियों की यह टिप्पणियाँ अपने आप में बताने के लिए पर्याप्त हैं कि प्रधानमंत्री की महत्वकांक्षी यूएई यात्रा ने उम्मीद से कहीं ज्यादा हासिल किया है, हालाँकि इसके वास्तविक प्रभावों के अध्ययन में अभी समय शेष है, पर इस बात से किसे इंकार हो सकता है कि नरेंद्र मोदी की प्रत्येक विदेश-यात्रा का कम से कम इतना प्रभाव तो होता ही है कि वहां के प्रवासी भारतीय नरेंद्र मोदी के ‘मैडिसन स्क्वायर’ जैसे प्रयासों से एक छत्र के नीचे आ खड़े होते हैं और एक अनजान देश में रोजी-रोटी कमाने वालों के लिए एक विशाल हिम्मत मिलती है सो अलग! दुबई के क्रिकेट स्टेडियम में ठीक ऐसा ही प्रोग्राम यूएई में रहने वाले भारतीयों का किस कदर उत्साह बढ़ाएगा, इस बात को सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है, हालाँकि यूएई सहित तमाम खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीयों की स्थिति पर और भी बातचीत करने की गुंजाइश बनी रहेगी, विशेषकर गैर-इस्लामिक लोगों के लिए. नरेंद्र मोदी की यह यात्रा इस मायने में भी और दुसरे मायनों में भी ‘मास्टर-स्ट्रोक’ ही कही जा सकती है. किसी को कोई शक हो तो वह अपने दिमाग की बत्ती फिर से जलाये… !!

– मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

The Prime Minister, Shri Narendra Modi meeting the Vice-President and Prime Minister of UAE, HH Mohammed bin Rashid Al Maktoum, at Za’abeel Palace, Dubai, on August 17, 2015.
The Prime Minister, Shri Narendra Modi meeting the Vice-President and Prime Minister of UAE, HH Mohammed bin Rashid Al Maktoum, at Za’abeel Palace, Dubai, on August 17, 2015.

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