घास की रोटी – Ghas ki Roti, Short Story by Mithilesh ‘Anbhigya’!
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राजस्थान के एक विद्यालय में कार्यक्रम चल रहा था. कवि, नेता, वक्ता अपनी प्रस्तुति देकर श्रोताओं को भाव-विभोर कर रहे थे. वाह-वाह, तालियों से प्रस्तोताओं का उत्साह आसमान छू रहा था. स्टेज पर मंत्री, नामी लेखक, विद्वानों के साथ हमारे इतिहास पुरुष महाराणा प्रताप के वंशज ‘हुकुम’ का विराजमान होना कार्यक्रम को अलग ही गरिमा प्रदान कर रहा था. मैं श्रोताओं की अगली पंक्ति में बैठा ‘हुकुम’ के तेज को निहार रहा था और इतिहास की हल्दीघाटी और चेतक की टापों से भारत के वीरों को याद करते हुए गौरवान्वित हुए जा रहा था. कार्यक्रम की फोटो लेने के लिए अपने महंगे स्मार्टफोन लेकर दर्शक एक दुसरे से होड़ कर रहे थे. यूं भी कार्यक्रमों में अपने कैमरे से फोटो लेकर फेसबुक पर डालने का मजा आधुनिक पीढ़ी बखूबी समझती है. अपने देश के प्रधानमंत्री भी तो ‘सेल्फ़ी’ के दीवाने हैं. मेरे बगल में एक हृष्ट-पुष्ट अधेड़ विराजमान थे. मोटी और तनी हुई मूंछों के साथ, एक 6-7 साल का लड़का और उससे थोड़ी बड़ी लड़की उनके साथ थे. लडकियां वैसे भी धीर-गंभीर होती हैं, लेकिन लड़का बार-बार मचल रहा था और वह महाशय उसे इशारों से चुप कर बैठने को कह रहे थे. लड़का शायद अपने पापा का फोन मांग रहा था, फोटो खींचने के लिए. मुझसे रहा न गया और मैंने उस लड़के की वकालत कर ही दी. बिचारे हिचक रहे थे, लेकिन बच्चे के चेहरे की ओर देखकर उन्होंने अपना फोन निकाला. वह नोकिया का कोई पुराना मॉडल था, ब्लैक एंड वाइट मॉडल. बच्चा उसे देखकर खुश हो गया और फोटो खींचने का अभिनय करने लगा, क्योंकि कैमरा तो उसमें था नहीं. लड़की झेंप रही थी और चोर नजरों से मेरे हाथ में दबे लम्बी स्क्रीन के फोन को देख रही थी. आप एक-दो फोटो निकाल दोगी, मैंने उससे कहा! पहले उसने अपने पिता की तरफ देखा, फिर मजबूती से कहा, अंकल! मुझे नहीं आता… ! मंच पर मंचीय कवि महाराणा प्रताप के स्वाभिमान और मुसीबत में उनके परिवार द्वारा घास की रोटी खाने पर वीर-रस की कविता का पाठ कर रहे थे. मैंने चुपचाप अपना स्मार्टफोन जेब में रकह और सभागार से बाहर निकल आया. कवियों की आवाज के साथ, रात गहराती जा रही थी, सर्द, राजपुताना रात!
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