Menu
blogid : 19936 postid : 852618

दो रिक्शेवाले – Do Rikshewale, Hindi Short Story on Common Justice

Mithilesh's Pen
Mithilesh's Pen
  • 361 Posts
  • 113 Comments

अरे साहब! उस रिक्शे पर मत बैठो, उसने चढ़ा राखी है. मुझे अपनी कंपनी के काम से मीटिंग करने के बाद दिल्ली की पाश कॉलोनी से मेट्रो स्टेशन तक जाना था. थोड़ी दूर का ही रास्ता था, लेकिन अनजान होने के कारण मैंने रिक्शा लेना ठीक समझा. शाम का समय था. उस मरियल से रिक्शे वाले ने कातर दृष्टि से मुझे देखा. मैं भी भाव वश उसके रिक्शे पर बैठने लगा. उसने सचमुच पी रखी थी. रिक्शे पर बैठते समय एक भभका सा लगा. पर चाहकर भी मैं उतर नहीं पाया. कालोनी के अंदर की सडकों पर वह अपनी तरफ से संभाल कर ही चलाता रहा, किन्तु मुझे उसको लगातार टोकना पड़ा. धीरे भाई, बाएं ले लो, आराम से. कालोनी के बाहर रिक्शा में रोड पर आ गया. मेट्रो स्टेशन सामने chetan-bhagat-booksही दिख रहा था. मैं सावधानी वश उतर गया और उसको किराया देने के लिए जेब में हाथ डाला. संयोग से छुट्टे पैसे थे नहीं. पास की दुकानों पर भी पूछ आया, पर नहीं. मैंने उससे कहा कि मेट्रो स्टेशन तक आ जाओ, वहां अपना मेट्रो कार्ड रिचार्ज करा कर तुम्हें पैसे देता हूँ. हम रॉन्ग साइड थे. मैं फूटपाथ पर पैदल और वह मेरे पीछे रॉन्ग साइड से ही आने लगा. अचानक एक ट्रैफिक हवलदार प्रकट होकर बिना कुछ पूछे उसके रिक्शे की हवा निकालने लगा. पता नहीं दिल्ली पुलिस की यह कौन सी व्यवस्था है. खैर, वह रिक्शे वाला सहम सा गया. दारू चढ़ा रखी थी, इसलिए अपना कुछ बचाव भी नहीं कर पाया. उसने रिक्शा वापस मोड़ लिया. मैं असहाय भाव से उसे देखता रहा. मैं भी जल्दी से स्टेशन में कस्टमर केयर पर गया, वहां भी लाइन लगी थी. खैर, कुछ देर में पैसे छुट्टे हो गए. मैं जल्दी से रिक्शे वाले की तरफ भाग कि उस बिचारे को पैसे तो दे दूँ. वहां दुसरे रिक्शे वाले खड़े थे, पर वह नजर नहीं आया. मैंने एक रिक्शे वाले को उसकी पहचान बताई, लेकिन वह कन्फ्यूज हो गया. फिर उससे पूछा कि रिक्शे, साइकिल की दूकान आस पास में है क्या? पर दूकान दूर थी. मैंने उसे किराया पकड़ा दिया और उस रिक्शे वाले को देने की बात कही. पास से दो-तीन और रिक्शे वाले आ गए और कहने लगे कि नहीं भैया जी! आप इसे मत दीजिये, आप भले आदमी हो, पर यह नहीं देगा. उस बिचारे ने सबकी बात सुनकर पैसा मेरे हाथ पर वापस रख दिया. मैं ऊहापोह में पड़ गया और यह सोचकर कि देश में रिक्शेवाले अभी बेईमान नहीं हुए हैं, उसी के हाथ पर पुनः पैसे देते हुए कहा कि आप को मिल जाए तो उसे दे देना नहीं तो आप रख लेना. वह नहीं, नहीं करता रहा, लेकिन मैंने अधिकारपूर्वक कहा तो वह इंकार न कर सका. फिर मैं मेट्रो कि तरफ लौट पड़ा… पर बड़ी देर तक वह दोनों रिक्शेवाले दिमाग में घुमते रहे. पता नहीं यह कैसा न्याय था, पर मन कुछ हद तक ही सही संतुष्ट था.

– मिथिलेश ‘अनभिज्ञ’
Do Rikshewale, Hindi Short Story on Common Justice

Keyword: laghukatha, laghu katha, chhoti kahani, short story, rickshaw, poor people, drink, liquor, delhi police, traffic police, wrong way, metro, colony, meeting, change money, kiraya, common justice, nyay, work, good, santushti

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh