Menu
blogid : 19936 postid : 851923

संघ, मोदी और केजरीवाल: बदलते दौर का हिंदुत्व – Indian Youth and New Flavour of Hindutv Politics with Modi, Kejriwal!

Mithilesh's Pen
Mithilesh's Pen
  • 361 Posts
  • 113 Comments

दिल्ली के चुनाव परिणामों ने देश की राजनीति में आ रहे बदलावों को व्यापक रूप से पुख्ता किया है. इसे समझने के लिए हमें पिछले लोकसभा चुनावों का पन्ना फिर से पलटना होगा. 9 महीने पहले जब लोकसभा में नरेंद्र मोदी प्रचंड बहुमत लेकर लोकसभा में पहुंचे थे तो यह swaraj-book-written-by-arvind-kejriwalबात बड़ी जोर शोर से कही गयी कि उनकी जीत ‘हिंदुत्व के एजेंडे’ की जीत है. दूसरी ओर यह कहने वालों की भी कमी नहीं रही कि यह हिंदुत्व की बजाय मोदी की विकासवादी छवि के लिए किया गया वोट है. मैं समझता हूँ यह दोनों ही तर्क सिरे से गलत थे. तीसरे तरह के वह लोग थे, जिन्होंने कहा कि यह मोदी की विकासवादी छवि और हिंदुत्व का मिला जुला रूप है, जिसने राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस के वर्चस्व को समाप्त करने की हद तक तोड़ दिया है. गौर से सोचने पर यह तीसरी तरह का तर्क भी आंशिक रूप से ही सही प्रतीत होता है. आंशिक रूप से सही इसलिए क्योंकि मोदी की हिन्दुत्ववादी छवि और विहिप अथवा संघ की हिन्दू राजनीति में व्यापक अंतर आ चूका है. तह में जाने पर स्पष्ट हो जाता है कि दोनों हिन्दुत्ववादी छवियाँ एक दुसरे की विरोधी भी हैं. मोदी की शपथ ग्रहण से दिल्ली विधानसभा चुनाव तक हिंदुत्व की इन दोनों विचारधाराओं में टकराहट साफ़ दिखी है. स्वाभाविक है कि इन कथनों को पहली बार सुनने पर एक तरह की कन्फ्यूजन उत्पन्न होती है, लेकिन देश की राजनीति में आये व्यापक बदलावों का अध्ययन करने पर यह भ्रम दूर हो जाता है. आइये देखते हैं.

अंग्रेजों के देश में आने से पहले भारत हज़ारों साल तक गुलामी भुगत चूका था. न सिर्फ राजनीतिक बल्कि आम हिन्दुओं का धार्मिक-जीवन More-books-click-hereभी गुलामी से भरा हुआ था. समय-समय पर उस काल में भी हिन्दुओं की बगावत विभिन्न रूपों में जारी रही, किन्तु राजतन्त्र के प्रभाव एवं शिक्षा, संचार के अभाव ने उन आन्दोलनों को कभी संगठित होने ही नहीं दिया. खैर, उस राजतंत्रीय प्रणाली में जन मन के भावों की बजाय सैनिक-शक्ति एवं विरोधियों को कुचलने की क्रूर प्रणाली ज्यादा प्रचलन में रही. अंग्रेजों के देश में आने के साथ ही आधुनिकता का भी प्रवेश हुआ और उस आधुनिकता का लाभ भारतवासियों ने भी आन्दोलनों के लिए उठाया, जो कि स्वाभाविक बात थी. अंग्रेज हज़ारों साल के हिन्दू – मुस्लिम वैर को भांप चुके थे और उन्होंने इसका राजनीतिक लाभ भी उठाया. यूं तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन्म 1925 में हुआ, किन्तु उसका पोषण उन हज़ारों साल की धार्मिक गुलामी की प्रतिक्रिया थी जो संगठित होने के लिए अनुकूल माहौल का इंतज़ार कर रही थी. संघ के उभार के लिए आज़ादी के पहले के बीस साल और आज़ादी के बाद के 10 साल बड़े महत्वपूर्ण एवं अनुकूल रहे. यह वह काल था जब ‘गुरूजी’ के नाम से मशहूर एम. एस. गोलवलकर ने संघ का नेतृत्व एक लम्बे समय तक किया. देश विभाजन से महात्मा गांधी का पराभव हुआ और पाकिस्तान से आये शरणार्थियों एवं दंगों से प्रभावित हिन्दुओं ने संघ की राजनीतिक narendra-modi-a-political-biography-bookमहत्वाकांक्षा को एक आधार दिया. इस ऐतिहासिक सन्दर्भ को उद्धृत करना आवश्यक था क्योंकि इसी हिंदुत्व के इर्द-गिर्द संघ की राजनीति आर्थिक सुधारों की शुरुआत यानि 90 के दशक तक चली. 92 में देश विभाजन के बाद सबसे अनुकूल राजनीतिक स्थिति संघ और भाजपा के लिए तब बनी जब बाबरी ढांचे को ढहा दिया गया. लेकिन, इन तमाम समीकरणों के बावजूद संघ अभी सत्ता के नजदीक पहुँचने के बावजूद उस पर काबिज नहीं हो पायी थी. आर्थिक उदारीकरण के दौर में अटल बिहारी बाजपेयी ने समय की अनुकूलता को समझा और संघ के हिंदुत्व की बदली परिभाषा एवं नए प्रयोगों के साथ सत्ता का ज़रा सा स्वाद संघियों को मिला. धीरे-धीरे राज्यों में संघ की सरकारें बनने लगीं. गुजरात दंगों से भाजपा को तत्कालीन लोकसभा चुनावों में हार जरूर मिली, किन्तु कई राज्यों में उसके संगठनों को एक तेज धार भी मिली.

बस यही वह समय था, जब नरेंद्र मोदी और संघ के हिंदुत्व में अंतर पनपना शुरू हो गया था. नरेंद्र मोदी ने अपनी हिंदुत्व की परिभाषा को नए Buy-Related-Subject-Book-beजमाने के साथ तेजी से जोड़ा. उन युवाओं के साथ मोदी का जुड़ाव लगातार मजबूत हुआ, जो आर्थिक उदारीकरण के बाद आर्थिक रूप से, मानसिक और बौद्धिक रूप से सशक्त हो रहे हैं. संघ इस स्थिति में कोसों पीछे रह गया है. उन युवाओं के साथ वह नहीं जुड़ पाया है जो संचार के माध्यमों का इस्तेमाल करने में अपनी पुरानी पीढ़ी से कोसों आगे हैं. यह वही युवा हैं जो किसी #टैग के साथ देश भर में किसी मुद्दे पर 24 घंटे से भी काम समय में एक राय बना लेते हैं. यह वही युवा हैं, जो किसी जनलोकपाल के लिए पूरे देश में एक महीने से भी कम समय में ऐसा आंदोलन खड़ा कर देते हैं जिसके सामने संसद के सदस्य गिड़गिड़ाते हुए नजर आते हैं. और यही वह युवा हैं, जिन्होंने भाजपा एवं संघ को दिल्ली विधानसभा चुनाव में भरी दोपहरी में तारों के दर्शन करा दिए. सब कुछ बेहद जल्दी! इससे पहले कि कोई कुछ समझे, कोई कुछ रणनीति बनाये, कोई बूथ प्रबंधन करे या कोई पार्टी उन तमाम पारम्परिक समीकरणों को दुरुस्त करे… तब तक युवा सब कुछ कर चूका होता है. अब फिर से प्रश्न उठता है कि जब नरेंद्र मोदी इन युवाओं से जुड़े थे, तब वह इस मूड को क्यों नही भांप पाये? यही नहीं, सरकार में आने के बाद इन युवाओं की सलाह को सुनने और उनकी भागीदारी के लिए बेहद सक्रीय डिपार्टमेंट और डेडिकेटेड वेबसाइट बनाई गयी और आश्चर्य की बात तो यह है कि युवाओं का एक बड़ा वर्ग इसमें रुचि भी ले रहा है. तो क्या नरेंद्र मोदी यहाँ चूक गए हैं अथवा बात कुछ और है!

एक बार और थोड़ा पीछे की ओर चलते हैं. नरेंद्र मोदी जब गुजरात में मुख्यमंत्री थे, तब गुजरात दंगों के बाद के काल में उन पर मंदिरों को तोड़ने के साथ अन्य हिंदुत्व विरोधी आरोप लगाए गए और यह आरोप खुद संघियों और हिंदूवादियों ने ही लगाए थे. यही नहीं, उन पर गुजरात में संघ और विहिप इत्यादि संगठनों को बर्बाद करने का भी आरोप लगा, जो काफी हद तक सच भी था. केंद्र में आने के समय यह प्रश्न संघियों golvalkar-rss-sanghके बीच में चर्चा का विषय बना रहा. राजनीति को समझने वाले बेहद सतर्कता से इस बात को समझ सकते हैं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद के 9 महीनों में नरेंद्र मोदी ने इन संगठनों पर कुछ खास लगाम लगाने की कोशिश नहीं की. किसी एक भाजपा सांसद को डांट जरूर पड़ी, परन्तु भाजपा के तमाम सांसद और दुसरे संगठन हिंदुत्व के नाम पर अनर्गल बयानबाजी करते रहे. प्रधानमंत्री की चुप्पी पर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भी खूब हो-हल्ला मच रहा है, किन्तु प्रधानमंत्री खुद को विदेश दौरों और प्रशासनिक गतिविधियों तक ही सीमित रख रहे हैं. यहाँ तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के दो- दो बार धार्मिक सहिष्णुता पर ऊँगली उठाये जाने के बावजूद प्रधानमंत्री अपने होठों को सिले हुए से क्यों दिख रहे हैं? यह उनके जाँचे परखे गुजराती स्वभाव के भी विपरीत है और उनकी छवि के भी. आखिर, उन्होंने अपने राजनैतिक करियर में हिंदुत्व को लेकर न कभी बयानबाजी की है और अपने अधिकार क्षेत्र में किसी और को भी बयानबाजी नहीं करने दी है. यहाँ पर भी मोदी का हिंदुत्व संघ के हिंदुत्व से इस प्रकार भिन्न हो जाता है कि बयानबाजी के बजाय वह चुपचाप बड़ी कार्रवाई करने में यकीन रखते हैं. मोदी के समर्थक जानते हैं कि वह अपनी हिन्दुत्ववादी छवि के लिए उचित समय पर, पाकिस्तान पर सैनिक कार्रवाई करने में भी गुरेज नहीं करेंगे. इस सन्दर्भ में अमेरिकी संसद में एक रिपोर्ट भी पेश की जा चुकी है. जबकि तमाम बयानबाजी करने वाले बड़े से बड़ा संघी भी पाकिस्तान से युद्ध के नाम पर गोल-मोल बातें buy-books-hereकरने लगता है. अपनी तरह के हिंदुत्व का नायक, गुजरात में हिन्दुत्ववादी संगठनों को नेस्तनाबूत करने वाला, संजय जोशी के माध्यम से संघ को चुनाव के पहले ही घुटने टेकने पर मजबूर करने वाले शख्स की चुप्पी कुछ हजम नहीं हो रही है. इसका अर्थ जितना उलझा हुआ है, उतना स्पष्ट भी है. दिल्ली चुनाव परिणामों के बाद ही नहीं, आप पहले के राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय अख़बारों को उठकर देख लीजिये, सबमें मोदी के बहाने संघ पर ही निशाना साधा गया है. मोदी की चुप्पी संघ को और घायल करती जा रही है. अपने कार्यकर्ताओं को वह कैसे कहे कि वह गोडसे, घर-वापसी, मुसलमानों, बच्चे पैदा करने जैसे बयान न दें, क्योंकि सरकार तो उसे रोक ही नहीं रही है. अब मोदी के दोनों हाथों में लड्डू हैं. उनकी लोकप्रियता पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है, विशेषकर युवा वर्ग में और संघ और दुसरे हिन्दुत्ववादी संगठन लगातार निशाने पर आते जा रहे हैं. इस स्थिति के बाद एक ही विकल्प बचता है कि यदि मोदी को सरकार चलानी है और भाजपा को जीत दिलानी है तो वह एजेंडा मोदी का होगा. उनका ‘अपना हिंदुत्व’ का एजेंडा और उनका अपना ‘विकास का एजेंडा’. थोड़ा और साफ़ कहा जाय तो, अब मोदी के एजेंडे के अनुसार संघ को अपने एजेंडे में भारी बदलाव करने होंगे, अन्यथा अपने स्वयंसेवक के प्रधानमंत्री होने के बावजूद उसे राजनीतिक उपेक्षा का शिकार होना पड़ेगा. मोदी और उनके समर्थक बड़े साफ़ शब्दों में कह रहे हैं कि दिल्ली में हार इसलिए हुई क्योंकि रामजादा- ह….दा, गोडसे, घर वापसी इत्यादि पर बयानबाजी हुई थी. यही बात कश्मीर घाटी में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिलने पर उछली थी. इस बात का संघी और विश्व हिन्दू परिषद वाले विरोध भी नहीं कर पाएंगे क्योंकि यही बात अंतर्राष्ट्रीय जगत पर भी हो रही है, देश का युवा भी यही बोल रहा है, देश का मुसलमान भी यही बोल रहा है. जी हाँ! आपने सही सुना, देश का मुसलमान मोदी को वोट दे न दे पर उनके समर्थन में इसलिए बोल रहा है क्योंकि उसे हमेशा से संघ ज्यादा नापसंद है.

इस पूरे परिप्रेक्ष्य में सच बात तो यह है कि केंद्र में मोदी के इतने बड़े उभार की आशंका संघ को भी नहीं थी और उभार हो जाने के बाद भी संघ मोदी से निपटने के लिए कोई कारगर योजना नहीं बना पाया, ठीक उसी प्रकार जैसे वह देश के युवा को खुद से जोड़ नहीं पाया. आज यह प्रश्न chetan-bhagat-booksलाजमी है कि देश में अनेक क्षेत्रों में युवाओं के सक्रीय भूमिका निभाने के बावजूद संघ के मूल शिविर में कितने युवा हैं. राजनीति में हर तरफ युवाओं की व्यापक एंट्री हुई है, यहाँ तक कि भाजपा में भी, साहित्य से लेकर समाज सेवा और उद्योग में युवा जबरदस्त तरीके से खुद को प्रस्तुत कर रहे हैं. केजरीवाल की टीम को छोड़ ही दीजिये क्योंकि वहां तो लगभग सौ फीसदी युवा ही हैं, खुद मोदी की कोर टीम में युवाओं की भरमार है. ऐसे में संघ युवाओं को कितनी महत्वपूर्ण भूमिका में ला रहा है या फिर उनको सिर्फ संख्या बढ़ाने की दृष्टि से ही रखा गया है. जो कुछ थोड़े बहुत युवा हैं भी, उनको प्रेरित करने के विकल्प में संघ क्या बदलाव ला पाया है यह भी देखने वाली बात है. पहले के संघी, शादी नहीं करते थे, अब युवा भी नहीं करना चाहते हैं. संघी पहले सक्रीय रहते थे, अब युवा उनसे ज्यादा सक्रीय हैं, अध्ययन भी करते हैं. पहले के संघी देश सेवा के भाव से कार्य करते थे, किन्तु अब संघ में प्रवेश भाजपा जाने का राजमार्ग बन गया है. वैसे, युवाओं में राष्ट्रप्रेम के प्रति जागरूकता के भावों का विभिन्न कारणों से संचार भी हुआ है. पहले संघ के लोग आपस में चर्चा करके अनुभव को बढ़ाते थे, अब युवा, सोशल मीडिया पर उनसे कहीं ज्यादा और बहुकोणीय चर्चा करता है. अब उस युवा को यह कहना कि अरविन्द केजरीवाल, विदेशी शक्तियों द्वारा, हिंदुत्व के विरुद्ध खड़ा किया गया षड्यंत्र है, अविश्वसनीय लगता है. उस युवा को अब गोडसे, घर-वापसी जैसे शोरगुल वाले हिंदुत्व से ज्यादा प्रेम नरेंद्र मोदी वाले हिंदुत्व से है, जो चुपचाप कार्य करने और समस्या का इलाज करने में यकीन करती है. वह युवा वर्ग जानता है कि हिंदुत्व को अब असली खतरा इस्लाम से नहीं है, बल्कि चीन से है जो कि भारत के आर्थिक महाशक्ति बनने से ही सुरक्षित रहेगा. आधुनिक काल में, धर्म और अर्थ की जो मिक्स्ड संस्कृति तैयार हुई है, उसे समझने को संघ अभी तैयार नहीं दीखता है. उसके नेता मूर्खतापूर्ण बयान देते हैं कि देश की मस्जिदों में वह गौरी-गणेश की मूर्ति रखवा देंगे. अब देश की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी को यह हास्यास्पद और क्रोध किये जाने लायक लगता है. ऐसा नहीं है कि देश का युवा धर्म के मामले में सजग नहीं है, बल्कि सोशल मीडिया पर इन तमाम मुद्दों पर चर्चा होती ही रहती है. हिंदुत्व के समर्थक नेता यदि मोदी के हिंदुत्व का अध्ययन करें तो देश के युवाओं से कनेक्ट कर पाएंगे और इससे भी महत्वपूर्ण वह 80 और 90 के दशक की राजनीति से बाहर निकल पाएंगे. और मोदी ही क्यों, More-books-click-hereहिंदुत्व समर्थक नेता ‘अरविन्द केजरीवाल के हिंदुत्व’ का भी अध्ययन करें. उनकी पार्टी ने जामा मस्जिद के शाही इमाम के मुंह पर थप्पड़ मारते हुए ऐन चुनाव से पहले उनका समर्थन लेने से इंकार कर दिया था. न सिर्फ इंकार किया था, बल्कि इस मुद्दे को आप नेता संजय सिंह ने देशभक्ति से जोड़ते हुए, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को अपने बेटे की दस्तारबंदी में बुलाने और नरेंद्र मोदी को नहीं बुलाने को लेकर इमाम की बेइज्जती तक कर डाली. सावधान हो जाओ संघियों! ऐसी हिम्मत तुम भी न कर पाते. यही नहीं, भारत माता की जय और वन्दे मातरम के गाने केजरीवाल की सभा में पूरे जोश से गाये जा रहे हैं. मोदी भी यही करते हैं, पाकिस्तान से बातचीत एक झटके में समाप्त करते हैं और अमेरिका से गठबंधन करके चीन के माथे पर पसीना ला देते हैं. यह असली हिंदुत्व है, बदलते ज़माने का हिंदुत्व, मोदी का हिंदुत्व और केजरीवाल का हिंदुत्व जो देश प्रेम से सीधे कनेक्ट करता है, न कि शोरगुल मचाकर पाखंड!
संघ में बड़े व ‘बूढ़े’ विचारक होते हैं, उम्मीद है इस नए युवा हिंदुत्व पर विचार-मंथन होगा, अन्यथा मोदी अपने उद्देश्य से चूकते नहीं हैं, और पहली बाजी उनके हाथ रही है !!
– मिथिलेश

Indian Youth and New Flavour of Hindutv Politics with Modi, Kejriwal

Keyword: youth, yuva, rajniti, sangh, modi, kejriwal, delhi, chunav, rajniti, election results, false hinduism, true hinduism, economy and dharm, modi move, best article about Hindutv politics, hindi article about delhi election, recent hindi article aout RSS, Sangh, Modi is a great politician

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh